Friday 15 July 2011

बाबा बहुत बुलाये रे --

 प्रेरक - शास्त्री जी और शर्मा जी 
                                  (1)
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन  बड़ा  सताए  रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये  रे |
भटक-भटक के अटक रहा ये, जिधर इसे कुछ भाये रे  |
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन  बड़ा  सताए  रे ||1||
                                 (2)
बच्चों के संग अपना जीवन, मस्ती  भरा  बिताया  रे |
रोज साथ में खेलकूद कर, नीति-नियम सिखलाया रे |
माता  वैरी, शत्रु  पिता  जो,  बच्चे  नहीं  पढाया   रे |

तन्मयता से एक-एक को,  डिग्री  बड़ी  दिलाया  रे  ||2||
                                 (3)
गये सभी परदेस कमाने, विरह-गीत मन गाये रे |

रूप बदल के आजा बचपन, बाबा  बहुत बुलाये रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे | 
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे ||3||

जनता पूछे देश में, कितने महिने और |

24 comments:

  1. बहुत-बहुत आभार संगीता दी ||
    अभी ५५ में ४ बाकी हैं पर
    सभी बच्चे बाहर निकल चुके हैं ||
    कल्पना है कुछ चहल-पहल की |
    पर अभी तो मात्र कपास है |
    सूत चाहिए--
    तब जाकर लठ्ठे में लठ्ठा
    अभी तो ख्याली पुलाव ----

    ReplyDelete
  2. .आजा वापस प्यारे बचपन,
    पचपन बड़ा सताए रे |
    गठिया की पीड़ा से ज्यादा
    मन-गठिया तडपाये रे |
    भटक-भटक के अटक रहा ये-
    जिधर इसे कुछ भाये रे |1|
    आये याद बहुत बचपन की
    कविता याद दिलाये रे
    इससे भी ज्यादा तो हमको
    टिप्पणी दर्द डराए रे,
    अगर कहीं ये न कर पाए
    भूल बड़ी हो जाये रे.
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
    आपके प्रेरक शास्त्री जी व् शर्मा जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद्.

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब! बहुत सुन्दर !
    छोटा बच्चा समझ के कच्चा ना टकराना रे......

    ReplyDelete
  4. आभार मदन शर्मा जी |
    बच्चे सेटल हो गए हैं |
    अनंत अभिलाषाएं हैं---
    देखिये आगे-आगे होता है क्या --

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  6. आदरणीय रविकर जी बहुत सुन्दर रचना इस समय जो अवस्था बूढ़े माँ बाप की है चित्रित करती पूरे के पूरे अंक लाती आप की ये रचना बधाई


    गये सभी परदेस कमाने
    विरह-गीत मन गाये रे |
    रूप बदल के आजा बचपन
    बाबा बहुत बुलाये रे |
    गठिया की पीड़ा से ज्यादा
    मन-गठिया तडपाये रे |

    शुक्ल भ्रमर ५
    भ्रमर की माधुरी
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

    ReplyDelete
  7. सुंदर भाव, सार्थक प्रस्‍तुति। बचपन तो सभी को याद आता ही है।
    ------
    जीवन का सूत्र...
    लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर ! सार्थक प्रस्‍तुति...

    ReplyDelete
  9. वाह बहुत खूब!
    पढ़कर आनन्द आ गया!

    ReplyDelete
  10. बाबा बहुत ---------- / रुचिकर मनोहारी सृजन ,सुन्दर है , साधुवाद जी /

    ReplyDelete
  11. इतने सुन्दर तरीके से अभिव्यक्त कर देने से मन की गठिया का दर्द निश्चित रूप से हल्का हो जाना चाहिए...बधाई्द निश्चित रूप से हल्का हो जाना चाहिए...बधाई

    ReplyDelete
  12. गठिया की पीड़ा से ज्यादा मन गठिया तडफाय रे .......आजा वापस प्यारे बचपन ,पचपन बड़ा सताए रे .लेकिन रविकर भाई गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा भले कोई गाता रहे टा -उम्र -कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन .....
    बहुत अच्छी रचना .बधाई .

    ReplyDelete
  13. क्या बात , बहुत बेहतर तरीके से समां बांधा है आपने।

    ReplyDelete
  14. गजब की कविता लिखते हैं आप रविकर जी . बहुत सही चित्रण किया है अकेलेपन का , जब बच्चे पढाई आदि के लिए दूर हो जाते हैं ! अति सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  15. वाह वाह अभी पचपन से दूर हैं पर बचपन से भी दूर हैं बच्चो को देख रहे हैं बड़ा होता हुआ न फ़ूटा बम और हो पाये पचपन के तो याद रखेंगे यह लेखनी पचपन और बचपन पर

    ReplyDelete
  16. are pachpan me ye hall hai !!yaha to paisath me abhipahar par chadhna utarna chal raha hai!!!!

    ReplyDelete
  17. shandar, adbhut, dil ko gudgudane wali kriti...aisi kavita jisme dard samahit ho kintu shabdon ka aisa shandar prayog dil ko gudguda deta hai
    आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे |
    गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे
    shandar abhivyakti

    ReplyDelete
  18. Nice post.
    आदमी मज़े में मौत को भूल जाता है।
    फ़िरंगी हो या जंगी, अंजाम भूल जाता है।।
    आपकी रचना अच्छी है लेकिन कुछ सेना और पुलिस के बारे में भी बता देते तो और भी अच्छी हो जाती।
    मज़ा आ गया पढ़कर और हंसी भीं.

    शुक्रिया !
    समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape

    ReplyDelete
  19. बहुत ही अच्छी लगी कविता आपकी. आभार.

    ReplyDelete
  20. गजब की वास्तविक कविता!

    ReplyDelete
  21. क्या बहाव है आपकी कविता में....कुछ पकडे न रहें तो अच्छे - अच्छे इस रचना के बहाव में बह जायें. सचमुच एक बहुत बढ़िया गीत है ये....

    ReplyDelete
  22. 'आ जा वापस प्यारे बचपन,पचपन बड़ा सताए रे '
    ..............वाह रविकर जी .....पचपन बड़ा निष्ठुर है , दर्द अथाह है ......प्रस्तुति गज़ब की

    ReplyDelete
  23. वाह रविकर जी ...

    गये सभी परदेस कमाने, विरह-गीत मन गाये रे |
    रूप बदल के आजा बचपन, बाबा बहुत बुलाये रे |
    गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे |
    आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे ...

    अब कुछ लिखने की स्थिति में नहीं हूँ ...

    ReplyDelete