झारखंड से भेजता, शुभ-कामना असीम ।
मन-रंजक, मन-भावनी, इस प्रस्तुति की थीम ।
इस प्रस्तुति की थीम, नया जो कुछ भी पाया।होता मन गमगीन, पुराना बहुत लुटाया ।
पर रविकर यह रीत, चुकाते कीमत भारी ।
नेताओं पर कर रहे, शास्त्री जी जब व्यंग ।
होली में जैसे लगा, तारकोल सा रंग ।
तारकोल सा रंग, बड़ी मोटी है चमड़ी ।
नेताओं के ढंग, देश बेंचे दस दमड़ी ।
बेचारी यह फौज, आज तक बचा रही है ।
करें अन्यथा मौज, नीचता नचा रही है ।।
अपने मन-माफिक चलें, तोड़ें नित कानून ।
जो इनकी माने नहीं, देते उसको भून ।
देते उसको भून, खून इनका है गन्दा ।
सत्ता लागे चून, पड़े न धंधा मन्दा ।
बच के रहिये लोग, मिले न इनसे माफ़ी ।
महानगर में एक, माफिया होता काफी ।।
चंदा का धंधा चले, कभी होय न मंद ।
गन्दा बन्दा भी भला, डाले सिक्के चंद ।
डाले सिक्के चंद, बंद फिर करिए नाहीं ।
गन्दा बन्दा भी भला, डाले सिक्के चंद ।
डाले सिक्के चंद, बंद फिर करिए नाहीं ।
चूसो नित मकरंद, करो पुरजोर उगाही ।
सर्वेसर्वा मस्त, तोड़ कानूनी फंदा ।
होवे मार्ग प्रशस्त, बटोरो खुलकर चंदा ।।
खुद को सुकून देते हो या उसे ..
खुश होने के कारण तो अपने पास होते हैं
सामनेवाला ( अधिकांशतः ) आंसू देखने में सुकून पाता है
अब फैसला तुम्हारे हाथ है
खुद को सुकून देते हो या उसे ..
- रश्मि प्रभा
दूजे के दुःख में ख़ुशी, दुर्जन लेते ढूँढ़ ।
अश्रु बहाते व्यर्थ ही, निर्बल अबला मूढ़ ।।
सुनिए प्रभू पुकार, आर्तनाद पर शांत क्यूँ ।
हाथ आपके चार, क्या शोभा की चीज है ।
सारी दुनिया त्रस्त, कुछ पाखंडी लूटते ।
भक्त आपके पस्त, बढती जाती खीज है ।।
आशा के विश्वास को, लगे न प्रभु जी ठेस ।
होवे हरदम बलवती, धर-धर कर नव भेस ।।
कल की खूबी-खामियाँ, रखो बाँध के गाँठ ।
विश्लेषण करते रहो, उमर हो रही साठ ।
उमर हो रही साठ, हुआ सठियाना चालू ।
बहुत निकाला तेल, मसल कर-कर के बालू ।
दिया सदा उपदेश, भेजा अब ना खा मियाँ ।
देत खामियाँ क्लेश, कल की खूबी ला मियाँ ।।
रविकर जी को भा रहा, अब भी मेरा रूप।
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१।
गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।
मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर।
पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४।
पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय।
ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५।