Thursday, 24 May 2012

दिवस्पति की दिल्लगी से- झूम झूरे झेर झूरे-

लोमड़ी के दिवस पूरे !


लोमड़ी के दिवस पूरे-
पड़े-घूरे, उसे घूरें ||
रात बाकी-दिवस पूरे |
सदा थू-रे, बदा थूरे ||


घूर के भी दिन बहूरे-
लट्ठ हूरे, नग्न-हूरें ||
आँख सेकें, भद्र छोरे |
नहीं छू-रे, चलें छूरें ||


मस्त हैं अंगूर लेकिन
खले तू-रे, नहीं तूरे ||
दिवस्पति की दिल्लगी से-
झूम झूरे झेर झूरे ||

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
    टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
    मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
    शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।

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  2. दिवस पति यानी रवि यानी दिनेश...भाई वाह !

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  3. दिवस के तो हैं
    रात के भी हैं जी ।

    वाह !

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