परायों के घर
लटके हुवे सलीब पर, धड़ की दुर्गति देख ।
जीभ धड़ा-धड़ चल रही, अजब भाग्य का लेख ?
अजब भाग्य का लेख , ढूँढ ले रोने वाले ।
बाकी जान-जहान, शीघ्र ना खोने वाले ।
चेहरे की मुस्कान, मगर कातिल की खटके ।
करनी बंद दुकान, मरो झट लटके लटके ।।
एक आर्त अपील -लिव एंड लेट लिव!
(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि
क्वचिदन्यतोSपि
नैतिकता की तुला पर, छुपा पड़ा पासंग ।
अपना पलड़ा साजते, दूजे का बदरंग ।
दूजे का बदरंग, आइना खुद ना ताके ।
चीज हुई ईमान, घूमिये इसे दिखा के ।
चुका रहे हम चौथ, लूटते भ्रष्टाचारी ।
सही मित्र अरविन्द, मिटे ना यह बीमारी ।।
वासेपुर के पास में, है अपना आवास |
तीस साल लगभग हुवे, बात यहाँ की ख़ास |
बात यहाँ की ख़ास, मिले धन बाद रुपैया |
मौत मिले बेदाम, बड़े उस्ताद कमैया |
गया पुराना दौर, आज कुछ अलग दिखाता |
मिले श्रमिक को ठौर, मेहनती खूब कमाता ||
एक एक दृश्य तैरता, सहज सरल आभास |
राकेश चक्र जी मंगलम, काव्य गोष्ठी ख़ास |
काव्य गोष्ठी ख़ास, जमे सिद्धेश्वर भाई |
कवि प्रसून बदनाम, याद गेंदा जी आई |
शास्त्री जी का स्नेह, शारदा मातु विराजे |
कृपा बरसती नित्य, साहित्यिक वीणा बाजे |
प्र से सीखा प्रक्षयण, मुक्का मारे जोर |
ण से द्वि-मात्रिक णगण, नाम जोर मुंहचोर |
नाम जोर मुंहचोर, बना व से वरवारण |
नाम वंश का पाय, करे खुश होकर धारण |
प्रणव नाम से आज, यही सीखा है बन्दा |
प्रणव नाद अंदाज, बजाता कितना गंदा ||
गुर्गा कच्चा आम है, प्रथम खिलाओ पाल ।
"उल्लूक टाईम्स "
साहब का कड़छा बड़ा, निजी-गली का शेर ।
साहब का घोड़ा गधा, उनके हाथ बटेर ।
उनके हाथ बटेर, बटोरें बोरा-बस्ता ।
चूना किन्तु लगाय, नहीं शर्माता हंसता ।
कहो नहीं तुम ढीठ, कहे ये दुनिया कब का ।
खड़े खड़े दूँ पीट, मुंहलगा हूँ साहब का ।।
होने अथवा ना होने के बीच का एक सिनेमा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9MmoHLCfRABWn653pQ4UFbI2_4y1np34uYnvWb0eddDwTwk-NAST6ZlwjYKks0BC9cK4tjfp652kFVCn74lihthUVB7QVhpeSd30jbJWM-zlxgxUE2uau_0LzE0PDY7-mhxnDXHs2r7E/s320/478878_309784912441525_788630465_o.jpg)
वासेपुर के पास में, है अपना आवास |
तीस साल लगभग हुवे, बात यहाँ की ख़ास |
बात यहाँ की ख़ास, मिले धन बाद रुपैया |
मौत मिले बेदाम, बड़े उस्ताद कमैया |
गया पुराना दौर, आज कुछ अलग दिखाता |
मिले श्रमिक को ठौर, मेहनती खूब कमाता ||
"कविवर राकेश "चक्र" के सम्मान में गोष्ठी " (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![](http://2.bp.blogspot.com/-l2uCQt204Ww/T-nPe3e6M6I/AAAAAAAAMvI/d4zpHT5E-Y8/s320/DSCN1540.jpg)
एक एक दृश्य तैरता, सहज सरल आभास |
राकेश चक्र जी मंगलम, काव्य गोष्ठी ख़ास |
काव्य गोष्ठी ख़ास, जमे सिद्धेश्वर भाई |
कवि प्रसून बदनाम, याद गेंदा जी आई |
शास्त्री जी का स्नेह, शारदा मातु विराजे |
कृपा बरसती नित्य, साहित्यिक वीणा बाजे |
राहुल गाँधी ने क्या सीख लिया !!
Bamulahija dot Com at Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgE4LjLTkl48dXgYly6ZSj9axZMDDeBYihWl3-E5wX7HGwdyVu-eR2cxzUcsHFLbQbtMLdxZYo9yJRXEEtovVKn8xs0apvISuERStVW0IPdw1PSAo2C0LpD6Yu1VvRzgfaCAT2gBR5qCaA/s320/000000.jpg)
प्र से सीखा प्रक्षयण, मुक्का मारे जोर |
ण से द्वि-मात्रिक णगण, नाम जोर मुंहचोर |
नाम जोर मुंहचोर, बना व से वरवारण |
नाम वंश का पाय, करे खुश होकर धारण |
प्रणव नाम से आज, यही सीखा है बन्दा |
प्रणव नाद अंदाज, बजाता कितना गंदा ||
आभासी सम्बन्ध और ब्लॉगिंग
गुर्गा कच्चा आम है, प्रथम खिलाओ पाल ।
पकने पर खाने लगे, लगा "जाल" जंजाल ।
लगा "जाल" जंजाल, यातना शब्द पा गई ।
रहा था बेशक टाल, आज आवाज आ गई ।
बहुत बहुत आभार, जगाये उनको मुर्गा ।
मिलें डाल के आम, खिलायेगा वो गुर्गा ।। "सच्ची बात"
Sushil"उल्लूक टाईम्स "
साहब का कड़छा बड़ा, निजी-गली का शेर ।
साहब का घोड़ा गधा, उनके हाथ बटेर ।
उनके हाथ बटेर, बटोरें बोरा-बस्ता ।
चूना किन्तु लगाय, नहीं शर्माता हंसता ।
कहो नहीं तुम ढीठ, कहे ये दुनिया कब का ।
खड़े खड़े दूँ पीट, मुंहलगा हूँ साहब का ।।
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteआपके ही अंदाज़ से चर्चा का मज़ा ....
ReplyDeleteआभार आपका!
ReplyDeleteसशक्त और सार्थक प्रस्तुति!
आपकी टिप्पणियों से हमें भी ऊर्जा मिलती है।
चुका रहे हम चौथ, लूटते भ्रष्टाचारी ।
ReplyDeleteसही मित्र अरविन्द, मिटे ना यह बीमारी ।।
क्या बात है रविकर जी पढ़े हुए पोस्ट पर आपकी पुनर काव्यात्मक प्रस्तुति आनंद वर्धक होती है .मूल पोस्ट उन्नीस रह जाती है .
देखिये जनाब हम बस कौऎ बना रहे हैं
ReplyDeleteउनको भी ऊर्जा दे कर ये राकेट ऊड़ा रहे हैं ।
आभार !!