कामकाज में लीन है, सुध अपनी विसराय |
उत्तम प्राकृत मनुज की, ईश्वर सदा सहाय ||
कामगार की जिन्दगी, खटता बिन तकरार |
थोथे में ढूंढे ख़ुशी, मालिक का आभार ||
कामचोर कायल करे, कहीं कायली नाँय |
दूजे के श्रम पर जिए, सोय-सोय मर जाय ||
दूजे के श्रम पर जिए, सोय-सोय मर जाय ||
डूबे और डुबाय दें, ज्यों टूटे तट-बाँध ||
कामध्वज की जिन्दगी, त्याग नीर का नेह |
क्षुधित जगत पर मर मिटे, पर-हित धारी देह ||
पेटू कामाशन चहे, कामतरू के तीर |
भोजन के ही वास्ते, धारा तोंद - शरीर ||
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनिकृष्ट जीवन मानिए, जो होते कामांध |
ReplyDeleteडूबे और डुबाय दें, ज्यों टूटे तट-बाँध ||
कामध्वज की जिन्दगी, पर-हित धारी देह |
क्षुधित जगत के पेट हित, त्याग नीर का नेह ||
behtarin prastuti...
रोचक और शानदार प्रस्तुति ...
ReplyDeleteपहले चित्तर ढूंढकर, दोहा लियो बनाय
ReplyDeleteया गूगल में सर्च कर,चित्तर दियो सजाय!
...कहो कविवर/रविकर कैसी रही?
प्रिय रविकर जी हर श्रेणी को आप ने दर्शा दिया आनंद आ गया सच में कर्म की महत्ता और गुणवत्ता का कोई जबाब नहीं बहता झरना और नदिया .....
ReplyDeleteभ्रमर ५
रोचक और बहुत लाजवाब प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत खूब रविकर जी क्या बात है ! रोचक और शानदार दोहे ....
ReplyDeleteरोचक और बहुत लाजवाब प्रस्तुति
खूबसूरत अंदाज़ !अभिनव प्रयोग .बधाई .नए अंदाज़ के नीतिपरक व्यंग्य बाण .
ReplyDeleteइन दोहों में विलग मिला , रविकर का अंदाज
ReplyDeleteकिस चलनी में छाँट दिया ? कर्म, काम और काज.
जब रविकर हो जात है , धीर, वीर , गम्भीर
कलम - धनुष से नीकरै , भीष्म सरीखे तीर.
रविकर जी आपका बहुत- बहुत आभार मेरे १००वे फोलोवर के रूप में आपका बहुत स्वागत है, मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ...
ReplyDeleteरोचक और बहुत लाजवाब प्रस्तुति ...
भोजन के ही वास्ते धरा तोंद शरीर ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयोग है।
सुन्दर तस्वीरों के साथ शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteदिनेश भाई बहुत खूब .टिपण्णी भी गज़ब की की है आपने शान्ति भूषण प्रसंग पर शुक्रिया .
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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