हरिगीतिका में
कई गलतियाँ हैं --
क्षमा करें श्रीमन |
फिलहाल अपने बस का नहीं है यह छंद--
कुछ मदद करो भाई
वीभत्स-टिप्पणीकार
कई गलतियाँ हैं --
क्षमा करें श्रीमन |
फिलहाल अपने बस का नहीं है यह छंद--
कुछ मदद करो भाई
वीभत्स-टिप्पणीकार
जब टिप्पणी में वो समेटे, हर फ़साना लसलसा |
अलल-बछेड़ा का अल्लाना, बजे डेंगू का मसा |
हो पूँछ सीधी भौंक भूला, है अलर्की की दशा |
अनुरोध करना व्यर्थ है जो, कर चुका भारी नशा ||
अलल-बछेड़ा=अनभिग्य बालक अलर्क=पागल कुत्ता
भूषण-भूषित अन्ना टोपी
मरजादा को भूल सयाना, देश-द्रोह अनुशंसा |
इक तिनका भी नहीं उगे उत, वही जवाहर मंसा |
भूषण-भूषित अन्ना टोपी, की 'रविकर' परशंसा |
बिना कसौटी कसे मान मत, कागा है या हंसा ||
त्यौहार
जीवन की इकरसता करती, है अवसादी वर्षा |
समयबद्ध हो जाती चर्या, फुर्सत के पल तरसा |
जोश और उत्साह काटता, नीरसता का फरसा |
पर्व और त्यौहार देखकर, मन-मयूर जन हरसा |
लोकपाल का नहीं समर्थक
केजरी कसौटी से कसता, है सौ फीसदी खरा |
त्यौहार
जीवन की इकरसता करती, है अवसादी वर्षा |
समयबद्ध हो जाती चर्या, फुर्सत के पल तरसा |
जोश और उत्साह काटता, नीरसता का फरसा |
पर्व और त्यौहार देखकर, मन-मयूर जन हरसा |
लोकपाल का नहीं समर्थक
केजरी कसौटी से कसता, है सौ फीसदी खरा |
जूताबाजी माफ़ी पाती, नव-गाँधी रूप धरा |
त्योहारों का पावन मेला, सबसे अनुरोध करा |
लोकपाल का नहीं समर्थक, भरसक लग उसे हरा ||
त्योहारों का पावन मेला, सबसे अनुरोध करा |
लोकपाल का नहीं समर्थक, भरसक लग उसे हरा ||
की रचना
अनुरोध है हरिगीतिका में छंद एक रचाइए।
सुंदर सरस शब्दावली में उचित भाव सजाइए।।
सोलह तथा बारह कला फिर अंत में लधु-दीर्घ हो।
सोलह तथा बारह कला फिर अंत में लधु-दीर्घ हो।
मिल जाय शुभ शुचि छंद कोई पूर्ण यह अनुरोध हो ।१।
जीवन की इकरसता करती, है अवसादी वर्षा |
ReplyDeleteसमयबद्ध हो जाती चर्या, फुर्सत के पल तरसा |
जोश और उत्साह काटता, नीरसता का फरसा |
पर्व और त्यौहार देखकर, मन-मयूर जन हरसा |
बधाई !बधाई !बधाया !बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
बहुत खूब भाई साहब .आनंद वर्षण करते हैं आप जन भाषा में भी .दिवाली पर्व मंगलमय हो .खुशियों की उजास भरे आपके जीवन में ,आसपास .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .दिवाली पर्व मंगलमय हो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सार्थक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteजीवन की इकरसता करती, है अवसादी वर्षा |
ReplyDeleteसमयबद्ध हो जाती चर्या, फुर्सत के पल तरसा |
जोश और उत्साह काटता, नीरसता का फरसा |
पर्व और त्यौहार देखकर, मन-मयूर जन हरसा |
...वाह वाह !!क्या बात है ,बहुत सुंदर , रविकर ...बधाई ---विषय भाव तो एक दम अछूते हैं, और सटीक , सामयिक ...
..त्रुटियाँ तो पहली बार रहेंगी ही, निदान कर लीजिए अगली बार ...