Friday 18 January 2013

चला लड़ाने नैन, गई क्या मैम पुरानी ??



सैकिंड-हैण्ड देह-नीलामी !


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
गई पुरानी मालिकिन, ओनर-बुक ले साथ ।
पड़ा कबाड़ी के यहाँ, खपा रहा क्यूँ माथ ।
खपा रहा क्यूँ माथ, भाव डीजल का बढ़ता ।
अगर चढ़ाई पड़े, नहीं तू उस पर चढ़ता ।
अरे खटारा वैन, ख़तम अब हुई कहानी ।
चला लड़ाने नैन, गई क्या  मैम पुरानी ??


ब्लाग : क्या भूलूं क्या याद करुं !

महेन्द्र श्रीवास्तव 
आधा सच हमने लिख, आधा जाने लोग |
ब्लॉगर बहुतेरे यहाँ, होय सही उपयोग |
होय सही उपयोग, दिशा से दशा सुधारें |
मिलें देश-हित बन्धु, अहम् को अपने मारें |
सही शक्ति उपयोग, नहीं है कोई बाधा |
करो सधी शुरुवात, सिद्ध हो जाए आधा ||





"प्यार कहाँ से लाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रस्सी पर बल हैं पड़े, रहे बलबला ऊंट |
लाल मरुस्थल हो रहे, पर कानो में खूंट |
पर कानो में खूंट, नहीं जूँ रेंग रहे हैं |
टूट खड्ग की मूंठ, सभी अरमान बहे हैं |
शत्रु काट ले शीश, यहाँ पर दारू खस्सी |
मद में सत्ताधीश, साँप को समझें रस्सी ||

शख्शियत :हिना रब्बानी खार( पाकिस्तानी मैना )

Virendra Kumar Sharma 

रहे पाक गुलजार जी, रहे नियत भी नीक |
हार खार मक्कार भी, बाहर होते ठीक |
बाहर होते ठीक , लीक पर वही पुरानी |
मुँह की खाय सदैव, दैव करता नादानी |
बिलावजह जरदारि, बिलावल टांग-फसायें  |
उनके जोड़ीदार, यहाँ के फँस ना जाएँ ||


 निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब -

किश्ती डूबे किश्त में, काट *धारु-जल ख़्वाब ।
निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब ।
  *धारु-जल=तलवार
खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी ।
वालमार्ट का दाब, पड़ेगी मार बला की ।
चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु -खत भिश्ती ।
पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती  ।। 

तो कौन सा है दर्द भारी ?

किश्तों में हैं काटते, जनता की वे जेब ।
 मँहगाई गाई गई, झटक पचास फरेब ।।
सह लो फिर से यह मक्कारी ।
 तो,  कौन सा है दर्द भारी ?
दिल से दिल्ली दामिनी, दाग रही है धोय ।
हुवे प्रभावी मोर्चे, अँसुवन बदन भिगोय ।।
 मरे नहीं, पर अत्याचारी ।
तो,  कौन सा है दर्द भारी ?


  सीप की तलाश में..
पूरी होवे रश्मि की, भगवन शीघ्र तलाश |
बांचे जो यह पंक्तियाँ, खोवे होश-हवाश |
खोवे होश-हवाश, गजब दीवानापन है |
भरे-पुरे अहसास, चलो स्वाति सावन है |
मिले बूंद को सीप, रहे ना बात अधूरी |
रविकर का यह तेज, बनाए मोती पूरी ||


खरामा - खरामा

अरुन शर्मा "अनंत" 
 दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)
कहे बात मन की खरामा खरामा |
जमाने वतन की खरामा खरामा ||


अरुण जब अकेले गजल पढ़  रहा है-
चला कौन आये खरामा खरामा ||


करता हूँ मैं टिप्पणी, पढ़ कर पूरा लेख |
यहाँ लिंक लिक्खाड़ पर, जो चाहे सो देख |
जो चाहे सो देख, जमा हैं यहाँ हजारों |
कुछ करते नापसंद, करूं पर मैं क्या यारो |
आदत से मजबूर, उन्हें जो रहा अखरता  ||
लेकिन काम-चलाउ, कभी रविकर भी करता ||

इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
 शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
कर पाए ना घात,  पड़े भारी इक नारी ।।

10 comments:

  1. आदरणीय रविकर सर गुरुदेव प्रणाम, लिंक - लिक्खाड़ पर स्थान दे कर आप रचना को धन्य कर देते हैं. ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता सर. आभार

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  2. जो चाहे सो देख, जमा हैं यहाँ हजारों |
    कुछ करते नापसंद, करूं पर मैं क्या यारो |
    आदत से मजबूर, उन्हें जो रहा अखरता ||
    लेकिन काम-चलाउ, कभी रविकर भी करता || :D

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  3. चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु ल-खत भिश्ती ।
    पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती ।।
    तो कौन सा है दर्द भारी ?
    किश्तों में हैं काटते, जनता की वे जेब ।
    मँहगाई गाई गई, झटक पचास फरेब ।।
    सह लो फिर से यह मक्कारी ।
    तो, कौन सा है दर्द भारी ?
    दिल से दिल्ली दामिनी, दाग रही है धोय ।
    हुवे प्रभावी मोर्चे, अँसुवन बदन भिगोय ।।
    मरे नहीं, पर अत्याचारी ।

    क्या कहने हैं अभिव्यक्ति के बहुत सुन्दर और विस्तृत कलेवर है लिंक लिख्खाड जी का .शुक्रिया .

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  4. मिले बूंद को सीप, रहे ना बात अधूरी |
    रविकर का यह तेज, बनाए मोती पूरी ||
    सारी बातें आप इस तरह कह जाते हैं कि‍ कुछ कहने को बचता नहीं.....बस आभार व्‍यक्‍त करती हूं आपका....धन्‍यवाद

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  5. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  6. टिप्पणियाँ क्या सब तो बीरबल की हाजिर जवाबी हैं।
    बात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर

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  7. लाजबाब टिप्पणियाँ,,,रविकर जी ,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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