Friday 11 January 2013

चीं चीं चुप चुबलाय, भरोसा आश्वासन है-

डॉ शिखा कौशिक ''नूतन '' 

पुत्रों पर दिखला रहीं, माताएं जब लाड़ |
पुत्री पर प्रतिबन्ध क्यों, करती हो खिलवाड़ |
करती हो खिलवाड़, हमें है सोच बदलनी |
भेदभाव यह छोड़, पुत्र सम पुत्री करनी |
होकर के गंभीर, ध्यान देना है मित्रों |
अपनी चाल सुधार, बाप बनना है पुत्रों |

रश्मि 


वाह वाह क्या बात है, मुलाक़ात मुस्काय |
नयनों में मधुमास है, चीं चीं चुप चुबलाय |
चीं चीं चुप चुबलाय, भरोसा आश्वासन है |
सर्वश्रेष्ठ यह युगल, वृक्ष भी इन्द्रासन है |
दोनों एकाकार, स्वयं के छवि की ख्वाहिश |
बहती प्रेमाधार, हुई है कसके बारिश ||

 लेख लिखाते ढेर से, पढ़िए सहज उपाय ।
रेप केस में सेक्स ही, पूरा बदला जाय ।
पूरा बदला जाय, भ्रूण हत्या से बचकर ।
भेदभाव से उबर, करे सर्विस जब पढ़कर ।
दुर्जन से घबराय, छोड़ दिल्ली जो जाते ।
भरपाई हो मित्र, रहो फिर लेख लिखाते ।।

पुरुषों से दोस्ती करें अथवा ना करें ?


ZEAL
 ZEAL


आशा मिलती राम में, नर नारी संजोग |
आये आसाराम से, जाने कितने लोग |
जाने कितने लोग, भोग की गलत व्याख्या |
नित आडम्बर ढोंग, बड़ी भारी है संख्या |
नारी नहिं गलनीय, नहीं वह मीठ बताशा |
सुता सृष्टि माँ बहन, सदा दुनिया की आशा ||

  
रविकर 
  1. moonche ho to "azaad" jaisi! jabardast looks papa!!

Dinesh Chandra Gupta 

मेरे सुपुत्र (जो TCIL(PSU) नई दिल्ली 
में इंजीनियर हैं )  की टिप्पणी 
पर उनके बाबा की 85 की उम्र की तस्वीर 
लगाईं है-
कभी आजाद जैसा ही लुक था बाबा का-

"पत्थर दिल कब पिघलेंगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


आई मौनी अमाँ है, तमा तमीचर तीर |
नारी मरती सड़क पर, सीमा पर बलवीर |
सीमा पर बलवीर, देश में अफरा तफरी |
सत्ता की तफरीह, जेब लोगों की कतरी |
बेलगाम है लूट, समंदर पार कमाई |
ढूँढ़ दूज का चाँद, अमाँ यह लम्बी आई ||


जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल । 
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल ।  

दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना ।
 सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना ।


जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा ।  
 चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।।

 SADA 
सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत |
बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है |
फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है |
कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था |
मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा ||

पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो...


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 


अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय |
फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा |
रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा |
आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में |
रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में ||

5 comments:

  1. moonche ho to "azaad" jaisi! jabardast looks papa!!

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  2. बहुत सुंदर
    बढिया लिंक्स

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  3. वाह ,,,,क्या बात है नया लुक अच्छा लगा,,,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

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  4. बहुत खूब गुरुदेव बढ़िया सुन्दर अति सुन्दर रचनायें, हार्दिक बधाई

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