मेरे मित्र दीपक की, महा -लफंगों में
गिनती होती है यहाँ |
उनकी डायरी का एक पन्ना मिला मुझे
जस का तस प्रस्तुत है --
शंका के बादल मंडराए उनको दूर करो |
तुम अपने विश्वास सूर्य से जीवन धूप भरो ||
रिस-रिस रिश्ते, रिसते-रिसते रीते हुए नयन |
शादी मुझसे प्यार किसी से कैसा किया चयन ||
होंठ से बाहर निकले नगमें तेरा नाम लिए |
और किसी की खातिर हमने अपने होंठ सिये ||
सिले होंठ की कसम खामियां कभी नहीं देखी-
तू ही मेरी एक अकेली कष्ट अपार हरो ||
शंका के बादल मंडराए उनको दूर करो |
तुम अपने विश्वास सूर्य से जीवन धूप भरो ||
चाहत की स्वप्निल दुनिया में तिनका-तिनका जोड़ा |
प्रिये बताओ कारण क्या जो मेरा सपना तोडा | |
दर्द से व्याकुल जीवन में तुम नश्तर चुभा रहे |
तड़पाने से अंत भला क्यों दुनिया लुभा रहे ||
सारी खुशियाँ सारा वैभव अपने प्रियतम पर |
करूँ निछावर अपना जीवन होगी प्रीति अमर ||
अमर प्रीति की खातिर दीपक तिल-तिल जलता है |
जलते दीपक की बाती को यूँ न *पूर करो || *बुझाना
शंका के बादल मंडराए उनको दूर करो |
तुम अपने विश्वास सूर्य से जीवन धूप भरो ||
होंठ से बाहर निकले नगमें तेरा नाम लिए |
ReplyDeleteऔर किसी की खातिर हमने अपने होंठ सिये ||
बहुत सुन्दर लिखा है.बधाई आपके मित्र दीपक जी को.
एक ग्रुप था वो अक्सर आ जाता था
ReplyDeleteअपनी समस्या के समाधान के लिए |
मरता न क्या करता भाई ||
समर्पण भाव की रचना ,प्रति -बद्धता से संसिक्त प्रेम की गुहार लिए ,मनुहार करती ...
ReplyDeleteपूरा मामला उतरा नही दिमाग मे क्या लिखा है और तारतम्य भी नही है भाई कोई आदमी जब आपके ब्लाग मे आता है तो उसका दिमाग सम भाव पर होता है उसको कविता के भाव का अहसास कराना आपकी जिम्मेदारी है सरलता से कठिन बातो मे जाने का मार्ग खोलना चाहिये
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