(1)
लोकपाल का कच्चा जाल,
कचरा-बकरा होय हलाल |
मगरमच्छ तो काटे जाल,
लेकर बैठा बढ़िया ढाल |
व्यर्थ बजावत अन्ना गाल,
करता-रहता सदा बवाल |
काट रहे जो जमके माल,
उनपर करता खड़े सवाल |
सौ करोड़ पब्लिक दे टाल,
ठोक रहा फिर काहे ताल |
(2)
संघ से जोड़े बैठा तार,
लेकर छूरी दंड कटार |
कचरा-बकरा होय हलाल |
मगरमच्छ तो काटे जाल,
लेकर बैठा बढ़िया ढाल |
व्यर्थ बजावत अन्ना गाल,
करता-रहता सदा बवाल |
काट रहे जो जमके माल,
उनपर करता खड़े सवाल |
सौ करोड़ पब्लिक दे टाल,
ठोक रहा फिर काहे ताल |
(2)
संघ से जोड़े बैठा तार,
लेकर छूरी दंड कटार |
अन्ना के तो पैदल चार,
व्यर्थ कांपती है सरकार |
हाथी घोड़े सही सवार,
मंत्री की चौतरफा मार |
ऊंट-सिपाही सैन्य अपार,
कर अनशन का बंटाधार |
अन्ना को बाबा सा घेर,
जंतर - मंतर कर दे ढेर ||
व्यर्थ कांपती है सरकार |
हाथी घोड़े सही सवार,
मंत्री की चौतरफा मार |
ऊंट-सिपाही सैन्य अपार,
कर अनशन का बंटाधार |
अन्ना को बाबा सा घेर,
जंतर - मंतर कर दे ढेर ||
हाथी घोड़े सही सवार,
ReplyDeleteमंत्री की चौतरफा मार |
कविता में आपने अपने विचारों को बखूबी व्यक्त किया है।
भविष्य में छिपा है हार जीत का हिसाब, करना होगा इंतजार।
ReplyDeleteक्या बात है रविकर जी आशु कवि अशोक चक्र - धर को आप बहुत पीछे छोड़ चुकें हैं .अंग्रेजी में एक कहावत है -गिव दा डेविल हिज़ ड्यू .यानी जो जिस सम्मान मान का अधिकारी है वह उसे दिया ही जाना चाहिए .सटीक व्यंग्य इस सरकार पर जो बघनखे पहने अन्ना की बाट जोह रही है जंतर मंतर पर .
ReplyDeleteअन्ना के तो पैदल चार,
ReplyDeleteव्यर्थ कांपती है सरकार ।
और क्या, चार से सरकार डर गई।
जय हो खाल खींचते रहो छाल उतारते रहो
ReplyDeleteक्या सरकार सचमुच कांपती है - या ज्यादा नशे (सत्ता के) के कारन हाथपैर कांपते प्रतीत होते हैं
ReplyDeleteबेहतरीन :)
अन्ना के तो पैदल चार,
ReplyDeleteव्यर्थ कांपती है सरकार ।
चारों से सरकार को डर भी लगता है और सरकार का गला भी सूखता है.
सरकार के डर के आगे जनता की जीत है.....
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दचित्र!
--
पूरे 36 घंटे बाद नेट पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सबके यहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ!
अन्ना को बाबा सा घेर,
ReplyDeleteजंतर - मंतर कर दे ढेर |
इरादे तो यही लगते हैं लेकिन अन्ना के ये पैदल चार देखिये लाखों बन जाते तो ....
आदरणीय रविकर जी -बहुत सुन्दर और सराहनीय प्रयास , अच्छे लेखों , रचनाओ को प्रोत्साहित करना - हिंदी को बढ़ावा देना -साहित्य की तरफ सब का ध्यान आकर्षित करना एक मेहनत भरा और जटिल कार्य है -आज की दुनिया में जब सब अपनों से भी रिश्ते रखने में कन्नी काट रहे इतना संकलन करना चुनना और उन्हें सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करना सराहनीय है आप को और चर्चा मंच से जुड़े इस तरह के विद्वद जनों को हार्दिक अभिवादन और शुभ कामनाएं -
मेरी रचना --उनकी ये जुल्फें घनेरे बादल हैं -भ्रमर का दर्द और दर्पण से आप ने चुनी हर्ष हुआ -
भ्रमर जागरण जंक्सन पर का भी आप ने लिंक दिया बहुत अच्छा हुआ -
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
आज रांची प्रवास के मध्य में हूँ |
ReplyDeleteएक मित्र के घर से आपका आभार कर रहा हूँ ||
:)) खींच दिया जी ऐसे खाल
ReplyDeleteमुस्कानों में छिपता गाल :))
वाह!
ReplyDeleteanand hi anand...jee bhar ke gaya hai..jee bhar gungunaya hai..dil ne wah wah nad hi uthaya hai..teeron pe teer maar sabko hasaya hai...kya khoob panktiyan hain kya shabdon ki maya hai...bahut sari badhaiyon ke sath
ReplyDeleteवाह वाह!!! बहुत ही सटीक व्यंग
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व्यंग..बधाई
ReplyDeleteअन्ना को बाबा सा घेर ,
ReplyDeleteजंतर मंतर कर दे ढेर .
वो एंटी इंडिया टी वी उस रोज़ कह रहा था ,अन्ना अपनी बात से मुकर गए .जंतर मंतर को छोड़ अन्यत्र भी अनशन को तैयार हैं ,दूसरी सांस में कह रहे थे ये चैनलिया अन्नाजी उदंड हैं गाँधी जी की तरह विनम्र नहीं है और विनम्रता क्या होती है .अन्नाजी ने स्थान का कोई दुराग्रह नहीं रखा है .यह अच्छी बात है .
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ReplyDeleteरविकर जी,आपकी रचनात्मक ऊर्जा का सृजन ज़ारी रहे .आपकी दो टूक संस्मरण पर सटीक लगी ,आभार .
ReplyDeleteबेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसटीक बात कही है ...
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