बिना जरुरत के सभी, खाओ आयोडीन,
कई विदेशी कम्पनी, पीसी बड़ा महीन |
पीसी बड़ा महीन, नमक के बने दरोगा,
महंगाई का बोझ, आम जनता ने भोगा |
वही लुटेरे रोज , जेब सबही की घूरत,
चाट रहे वे माल, नमक हम बिना जरुरत ||
कई विदेशी कम्पनी, पीसी बड़ा महीन |
पीसी बड़ा महीन, नमक के बने दरोगा,
महंगाई का बोझ, आम जनता ने भोगा |
वही लुटेरे रोज , जेब सबही की घूरत,
चाट रहे वे माल, नमक हम बिना जरुरत ||
मूर्खता का लाभ हर कोई लेता ही है एक बात और अब आविष्कार नई-नई ज़ुरूरतें पैदा कर रहा है हम यह भी तो नहीं जानते कि हमें किस चीज़ की कितनी ज़ुरूरत है ऐसे में अक्सर मूर्ख बनना कितना आसान है और भेड़िए तो चतुर्दिक घात लगाए ही हैं। आप ने बहुत सही लिखा।ैदा कर रहा है हम यह भी तो नहीं जानते कि हमें किस चीज़ की कितनी ज़ुरूरत है ऐसे में अक्सर मूर्ख बनना कितना आसान है और भेड़िए तो चतुर्दिक घात लगाए ही हैं। आप ने बहुत सही लिखा।
ReplyDeleteचाट रहे वे माल, नमक हम बिना जरुरत
ReplyDeletevery well said
VAH BAHUT KUB
ReplyDeletesareek vyangy .aabhar
ReplyDeleteपीसी बड़ा महीन, नमक के बने दरोगा,
ReplyDeleteमहंगाई का बोझ, आम जनता ने भोगा |..बहुत सही कहा आपने..आभार...
पीसी बड़ा महीन ,नमक के बने दरोगा ,
ReplyDeleteमंहगाई का बोझ ,आम जनता ने बोझा .बहुत सुन्दर प्रयोग नमक के दरोगा .और हकीकत यह भी हिन्दुस्तान के हर क्षेत्र को आयोडीन युक्त नमक नहीं चाहिए .हर क्षेत्र में न गोईटर है न गलगंड .आयोडीन की कमी बेशी सब इलाकों में नहीं है .
बहुत सही कहा आपने पर सचेत हमी को तो होना है और वह हम होने को तैयार नहीं हैं हमारा स्तर जो गिर जाएगा
ReplyDeleteपीसी बड़ा महीन, नमक के बने दरोगा,
ReplyDeleteमहंगाई का बोझ, आम जनता ने भोगा |
क्या बात है। सच है
कुण्डलिया बहुत जायकेदार रही सर!
ReplyDeleteबृहस्पतिवार, १४ जुलाई २०११
ReplyDeleteसहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा .. वोट मिला भाई वोट मिला है ,
सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा ..
वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
फ़ोकट सदन नहीं पहुंचें हैं ,जनता ने चुनकर भेजा है ,
किसकी हिम्मत हमसे पूछे ,इतना किस्में कलेजा है .
उनके प्रश्न नहीं सुनने हैं ,हम विजयी वे हुए पराजित ,
मिडिया से नहीं बात करेंगे ,हाई कमान की नहीं इजाज़त ,
मन मानेगा वही करेंगे ,मोनी -सोनी संग रहेंगे ,
वोट नोट में फर्क है कितना ,जनता को तो नोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है .पांच बरस का वोट मिला है .
हम मंत्री हैं माननीय हैं ,ऐसा है सरकारी रूतबा ,
हमें लोक से अब क्या लेना ,तंत्र पे सीधे हमारा कब्ज़ा ,
अभी तो पांच साल हैं बाकी ,फिर क्यों शोर विरोधी करते ,
हिम्मत होती सदन पहुँचते ,तो शिकवे चर्चे कर सकते ,
पर्चा भरने की नहीं कूव्वत ,फिर क्यों व्यर्थ कहानी गढ़ते ,
वोटर ही तो लोकपाल है ,हममें क्या कोई खोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है ,पांच बरस का वोट मिला है .
भगवा भी क्या रंग है कोई ,वह तो पहले भगवा है ,
फीका पड़ा लाल रंग ऐसा ,उसका अब क्या रूतबा है .
मंहगाई या लूट भ्रष्टता ,यह तो सरकारी चारा है ,
खाना पड़ेगा हर हालत में ,इसमें क्या दोष हमारा ,
जनता ने जिसको ठुकराया ,वह विपक्ष बे -चारा है ,
हमको ज़िंदा रोबोट मिला है ,वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
वही लुटेरे रोज़ जेब सब ही की घूरत ,
ReplyDeleteचाट रहे वे माँ नमक हम बिना ज़रुरत .
कह रविकर कविराज ,वोट है पांच बरस का ,
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हर तरफ दोस्त रविकर की कुण्डलियाँ छा चुकीं हैं ,हर ब्लॉग द्वारे .....मुबारक .