याद प्रिय आते रहो कुछ इस तरह,
मन-समंदर में कि जैसे ज्वार आये|
प्रत्येक दिन एक बार हौले से सही,
मास में पुरजोर प्रिय दो बार आये |
पूर्णिमा की चांदनी अथवा अमावस,
तार के बेतार से टंकार आये |
सीपियों-शंखो की भाषा में लिखे,
हृदय-तट पर प्यार फैले प्यार आये |
किरणे-उजाले - धूप-तारे - चांदनी,
की शिकायत तू मिटा दे द्वार आये|
काम का बन्दा, नकारा हो चुका,
शब्द-भावों पर जरा अधिकार आये |
जब कभी होगी प्रिये नजरे-इनायत,
और 'रविकर' शायरी में धार आये ||
दिनेश जी, आपकी रचनाएँ केवल दिल्लगी नहीं लगतीं, ये तो का भाव का उत्कर्ष हैं.
ReplyDeleteऎसी तराशी हुई रचनाओं के सृजन की कामना तो मैं निरंतर 'माँ शारदा' से करता रहा हूँ.
आपका लेखन ऊँचाइयाँ छू रहा है. केवल उच्चारण का सुख जिह्वा ही नहीं ले रही अपितु
मन भी रमा जा रहा है.
'सीपियों-शंखो की भाषा में लिखे,
ReplyDeleteहृदय-तट पर प्यार फैले प्यार आये'
इसको केवल दिल्लगी नहीं कहा जाएगा ज़नाब! गहरे भावों और सुआग्रहों से परिपूर्ण गम्भीर रचना है...बधाई
पूर्णिमा की चांदनी अथवा अमावस ,
ReplyDeleteमॉस में पुरजोर प्रिय दो बार आये ।
तार के बे -तार से टंकार आये ।
जब कभी होगी प्रिये नजरे इनायत ,
और रविकर शायरी में जान आये ।
बहुत खूब !पूरी धार है साहब शायरी में और क्या बच्चे की जान लोगे .
बहुत ही सुंदर और जानदार,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आस्था रखने पर बल जरुर मिलेगा ! सुन्दर कविता !
ReplyDeletevery nice post i like it
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार और ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
ReplyDeleteकाम का बन्दा, नकारा हो चुका,
ReplyDeleteशब्द-भावों पर जरा अधिकार आये |
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ग़ज़ल का हर एक अशआर बहुत खूबसूरत है!
याद प्रिय आते रहो कुछ इस तरह,
ReplyDeleteमन-समंदर में कि जैसे ज्वार आये|..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुन्दर भाव एवं शब्दों का संयोजन....