Saturday, 2 July 2011

छुपा जाते हैं गुलाब --

ओए, कैसे हैं ज़नाब ?
बड़े  वैसे  हैं  ज़नाब !
किसी को मुर्ग-मुसल्लम
बन्दे का खाना खराब ||

टालते  सारे  सवाल
दीखते हाज़िर जवाब |
भेंट  करते  हैं  गेहूं -
छुपा जाते हैं गुलाब ||

पिला देते हैं पानी
नशा देता है शबाब.
छुपे रुस्तम हैं आप
यही तो लब्बो-लुआब

5 comments:

  1. सुन्दर रचना ...

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  2. टालते सारे सवाल
    दीखते हाज़िर जवाब |
    भेंट करते हैं गेहूं -
    छुपा जाते हैं गुलाब |
    क्या खूब कही.

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  3. भई वाह!
    छुपे रुस्तम हैं आप
    यही तो लब्बो-लुआब

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  4. भेंट करतें हैं गेंहू ,छिपा जातें हैं गुलाब (ऐसे हैं ये नवाब ).अच्छा व्यंग्य .

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  5. छुपे रुस्तम हैं आप
    you write beautiful poems

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