नन्हे-मुन्हे पांव से,
छोटी-छोटी नाव से |
अपने-अपने गाँव से,
शीतल बरगद छाँव से --
खेल-खेलने आये हैं, मन सबका बहलाए हैं ||
चुन्नू मुन्नू भोर से,
रेस लगाते जोर से,
व्रेवो-व्रेवो शोर से
जमके नाचे मोर से--
सबके मन को भाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||
लम्बी कूद लक्की का
ऊंची कूद विक्की का
जेबलिन थ्रो बाबू का
भार उठाना साबू का---
सोना तमगा लाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||
बड़ी तेज ये हाकी हैं
एकादश जो बाकी है
ध्यानचंद से जादूगर
कीर्ति फैले दुनिया भर--
फिर उम्मीद जगाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||
मैराथन में मीलों भागे,
मुन्ना-प्रांजल सबसे आगे
बड़ी थकावट उनको लागे
किन्तु जीत की आशा जागे---
जम के जोर लगाए हैं, खेल-खेलने आये हैं ||
बहुत ही सुंदर सरल आसानी से दिल मे उतरने वाली
ReplyDeleteशीर्षक को छोड कर, सब कुछ बेहतर लगा?
ReplyDeleteआप की तारीफ का ढंग बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteबाल-रचना की कोशिश की है ||
आभार ||
अच्छी रचना लिखी है आपने!
ReplyDeleteसुन्दर...अतिसुन्दर...मनभावन
ReplyDeleteबहुत अच्छा खेल खेला है आपने भी कविता के मैदान में।
ReplyDeleteअति सुन्दर!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है ! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर , गेय एवं मनमोहक बालकविता
ReplyDeleteभाव गेयता बाल मन की जिज्ञासा लिए फुदकती भागती कविता .
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