Thursday, 28 July 2011

इस कोशिश पर तारीफ करें ||

नन्हे-मुन्हे  पांव से,
छोटी-छोटी नाव से |
अपने-अपने गाँव से,
शीतल बरगद छाँव से --
खेल-खेलने आये हैं, मन सबका बहलाए हैं ||

चुन्नू मुन्नू भोर से,
रेस लगाते जोर से,
व्रेवो-व्रेवो शोर से
जमके नाचे मोर से--
सबके मन को भाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||

लम्बी कूद लक्की का
ऊंची कूद विक्की का
जेबलिन थ्रो बाबू का
भार उठाना साबू का---
सोना तमगा लाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||

बड़ी तेज ये  हाकी हैं
एकादश जो बाकी है
ध्यानचंद से जादूगर
कीर्ति फैले दुनिया भर--
फिर उम्मीद जगाये हैं, खेल-खेलने आये हैं ||

मैराथन में मीलों भागे,
मुन्ना-प्रांजल सबसे आगे
बड़ी थकावट उनको लागे
किन्तु जीत की आशा जागे---
जम के जोर लगाए हैं, खेल-खेलने आये हैं ||

12 comments:

  1. बहुत ही सुंदर सरल आसानी से दिल मे उतरने वाली

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  2. शीर्षक को छोड कर, सब कुछ बेहतर लगा?

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  3. आप की तारीफ का ढंग बहुत अच्छा लगा |

    बाल-रचना की कोशिश की है ||

    आभार ||

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  4. सुन्दर...अतिसुन्दर...मनभावन

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  5. बहुत अच्छा खेल खेला है आपने भी कविता के मैदान में।

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  6. अच्छी प्रस्तुति ...

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  7. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है ! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  8. बहुत सुन्दर , गेय एवं मनमोहक बालकविता

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  9. भाव गेयता बाल मन की जिज्ञासा लिए फुदकती भागती कविता .

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