नहीं चाहिए मरहम सुन रे बे-दर्दी।
नहीं चाहिए तेरी कोई हमदर्दी।।सादे जीवन में इसने रौनक भर दी।
ठहर-ठहर कर भरता उच्छवासें जैसे
"रविकर" को है हुई ज़रा खाँसी-सर्दी।
तड़पूं चाहे तड़प-तड़प के मर जाऊं,
तुमने सिलवा दी मेरी फौजी वर्दी |
तन के घावों की चिंता अब नहीं मुझे
अंतर-मन में विरह-वेदना की *कर्दी |
घाव हमारे बे-हद हमें अज़ीज़ लगें,
ReplyDeleteसादे जीवन में इसने रौनक भर दी।
वाह .. क्या बात है ..
हाय रे बेदर्दी क्या हुआ, देख लेना लवेरिया तो नहीं हुआ।
ReplyDeleteक्या बात है....
ReplyDeleteतड़पूं चाहे तड़प-तड़प के मर जाऊं,
ReplyDeleteतुमने कम एहसान नहीं मुझपर कर दी।
सुंदर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कविता अभ्यास अच्छा चल रहा है... लगे रहो..
ReplyDeleteशुरू के तीन छंद बेहद अच्छे हैं. बाद के दो छंद जबरदस्ती के लग रहे हैं.
क्या बात है ..
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या ...।
ReplyDeleteघाव हमारे बेहद हमें अज़ीज़ लगें ,
ReplyDeleteसादे जीवन में इसने रौनक भर दी.
बहुत खूबसूरत करीब ज़िन्दगी के -
गर्दिशे ऐयाम तेरा शुक्रिया ,
हमने हर पहलू से दुनिया देख ली .
वाह भाई! बहुत बढ़िया पोस्ट... क्या बात है... बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब .. काफी दर्दभरी है आपकी रचना
ReplyDeletegahre bhaavo se sanjoya hai. sunder rachna.
ReplyDeleteरोचक ढंग में लिखा...बधाई.
ReplyDeleteरविकर जी बहुत ही गंभीर -और किस सहजता से इसे सहा गया -झेलने वाले को दुवाएं हौंसला ....
ReplyDeleteघाव हमारे बे-हद हमें अज़ीज़ लगें,
सादे जीवन में इसने रौनक भर दी।
भ्रमर 5
क्या होगा
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeletehurt and love