Tuesday, 19 July 2011

सत्य शाश्वत है अटल

अमर शहीद मंगल पाण्डे !!
सादर नमन ||

लेखनी है परेशां, न रच रही कोई गजल |
पेट से क्या हो गई, चूस स्याही दे उगल ||

शब्द तो स्वर बोध केवल,
भाव ही मतलब असल |
लुप्त  हो  जाएगा  अनृत, 
सत्य  शाश्वत  है  अटल ||

है  परिश्रम  मूल में  पर, 
भाग्य  से उगती फसल |
आस्मां का भ्रमण कर ले,
फिर के आये भू पटल  ||

बुद्धि का अंकुश हटा दे, 
मन  रहा ज्यादा मचल |
स्रोत्र  सूखें  सूख जाएँ , 
किन्तु न हिलता अचल ||

करती  तरंगें  चिड़ीमारी, 
बैठ अपने हाथ  मल |
हाथ  पर  सब  हाथ रक्खे, 
कोसते आजकल ||

दिग्विजय  ने  कहा  की  वो  किसी  को
( उज्जैन में भा जा यु मोर्चा के कार्यकर्त्ता को) 
थप्पड़ नहीं मार सकते ||
हाँ भाई आप तो लतिया सकते हैं ||
( जनार्दन पर जूता काण्ड के पत्रकार को )

15 comments:

  1. है परिश्रम मूल में पर,
    भाग्य से उगती फसल |
    आस्मां का भ्रमण कर ले,
    फिर के आये भू पटल |
    बहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति.आभार रवि जी

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  2. सुन्दर और सार्थक रचना

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  3. वाह...बहुत खूब...शब्द और भाव दोनों उत्कृष्ट हैं...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  4. शब्द तो स्वर बोध केवल,
    भाव ही मतलब असल |
    लुप्त हो जाएगा अनृत,
    सत्य शाश्वत है अटल |
    बहुत खूबसूरत और सार्थक रचना
    , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , बधाई

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  5. आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  6. है परिश्रम मूल में पर,
    भाग्य से उगती फसल |
    आस्मां का भ्रमण कर ले,
    फिर के आये भू पटल ||
    वाह रविकर गुरु, बहुत सही लिख गए, आपके समर्थन में ये मेरा पुछल्ला है कि-
    'चिड़िया कितनी उड़े आकाश, चारा है धरती के पास....'

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  7. चिड़िया कितनी उड़े आकाश, चारा है धरती के पास... सुन्दर, भावमयी सार्थक रचना आभार...

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  8. है परिश्रम मूल में पर,
    भाग्य से उगती फसल |
    आस्मां का भ्रमण कर ले,
    फिर के आये भू पटल ||

    सार्थक रचना,साभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. हाथ पर सब हाथ रक्खे,
    कोसते बस आजकल
    thoughtful poem

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  10. लेखनी है परेशां, न रच रही कोई गजल |
    पेट से क्या हो गई, चूस स्याही दे उगल ||
    @ रविकर जी, आपने ये छंद तो बेहद बढ़िया लिखा है. इसे किसी प्रबंधकाव्य का 'मंगलाचरण' कहा जा सकता है. बस इसी अंदाज में लेखनी को उलाहना देते हुए उससे 'मंगल पाण्डेय' के चरित्र पर चलने को कहिये.

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  11. वाह रवि जी ... शब्द और भाव और लाजवाब छंद ... मज़ा आ गया आज तो ...

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  12. है परिश्रम मूल में पर
    भाग्य से उगती फसल
    ............यथार्थ की BHAVPOORN PRASTUTI

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  13. दिग्विजय जी को कांग्रेस ने चाणक्य होने का विभ्रम कराया हुआ है .हेसुनिसेशन होतें हैं कोंग्रेस और दिग्गी को .मंद मति बालक को यह और मंद मति बांये है .रविकर भाई करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भया उदास ,कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कतियाँ के पास .अच्छी रचना है ज़नाब की .अर्थ सौन्दर्य और भाव संसिक्त

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  14. दी से दीपक को दी से दिनेश मिले......

    बहुत खूब भाई..... ब्लॉग आपका पाया है रचनाकार में टीप से....

    उम्दा लगा...... समर्थक बन बैठे..

    हाँ, बैठे बिठाए .

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  15. इसे ही कहते हैं 'दिनेश' को 'दीपक' दिखाना....

    या कहें ... दीपक जी ने दिनेश जी से प्रगाढ़ता बढ़ाने के लिये कदम बढाया.

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