(1)
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे |
भटक-भटक के अटक रहा ये, जिधर इसे कुछ भाये रे |
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे ||1||
(2)
बच्चों के संग अपना जीवन, मस्ती भरा बिताया रे |रोज साथ में खेलकूद कर, नीति-नियम सिखलाया रे |
माता वैरी, शत्रु पिता जो, बच्चे नहीं पढाया रे |
तन्मयता से एक-एक को, डिग्री बड़ी दिलाया रे ||2||
(3)
गये सभी परदेस कमाने, विरह-गीत मन गाये रे |
रूप बदल के आजा बचपन, बाबा बहुत बुलाये रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे |
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे ||3||
अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार संगीता दी ||
ReplyDeleteअभी ५५ में ४ बाकी हैं पर
सभी बच्चे बाहर निकल चुके हैं ||
कल्पना है कुछ चहल-पहल की |
पर अभी तो मात्र कपास है |
सूत चाहिए--
तब जाकर लठ्ठे में लठ्ठा
अभी तो ख्याली पुलाव ----
.आजा वापस प्यारे बचपन,
ReplyDeleteपचपन बड़ा सताए रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा
मन-गठिया तडपाये रे |
भटक-भटक के अटक रहा ये-
जिधर इसे कुछ भाये रे |1|
आये याद बहुत बचपन की
कविता याद दिलाये रे
इससे भी ज्यादा तो हमको
टिप्पणी दर्द डराए रे,
अगर कहीं ये न कर पाए
भूल बड़ी हो जाये रे.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
आपके प्रेरक शास्त्री जी व् शर्मा जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद्.
बहुत खूब! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteछोटा बच्चा समझ के कच्चा ना टकराना रे......
आभार मदन शर्मा जी |
ReplyDeleteबच्चे सेटल हो गए हैं |
अनंत अभिलाषाएं हैं---
देखिये आगे-आगे होता है क्या --
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी बहुत सुन्दर रचना इस समय जो अवस्था बूढ़े माँ बाप की है चित्रित करती पूरे के पूरे अंक लाती आप की ये रचना बधाई
ReplyDeleteगये सभी परदेस कमाने
विरह-गीत मन गाये रे |
रूप बदल के आजा बचपन
बाबा बहुत बुलाये रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा
मन-गठिया तडपाये रे |
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
सुंदर भाव, सार्थक प्रस्तुति। बचपन तो सभी को याद आता ही है।
ReplyDelete------
जीवन का सूत्र...
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं?
बहुत सुन्दर ! सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब!
ReplyDeleteपढ़कर आनन्द आ गया!
बाबा बहुत ---------- / रुचिकर मनोहारी सृजन ,सुन्दर है , साधुवाद जी /
ReplyDeleteइतने सुन्दर तरीके से अभिव्यक्त कर देने से मन की गठिया का दर्द निश्चित रूप से हल्का हो जाना चाहिए...बधाई्द निश्चित रूप से हल्का हो जाना चाहिए...बधाई
ReplyDeleteगठिया की पीड़ा से ज्यादा मन गठिया तडफाय रे .......आजा वापस प्यारे बचपन ,पचपन बड़ा सताए रे .लेकिन रविकर भाई गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा भले कोई गाता रहे टा -उम्र -कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन .....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना .बधाई .
क्या बात , बहुत बेहतर तरीके से समां बांधा है आपने।
ReplyDeleteगजब की कविता लिखते हैं आप रविकर जी . बहुत सही चित्रण किया है अकेलेपन का , जब बच्चे पढाई आदि के लिए दूर हो जाते हैं ! अति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteवाह वाह अभी पचपन से दूर हैं पर बचपन से भी दूर हैं बच्चो को देख रहे हैं बड़ा होता हुआ न फ़ूटा बम और हो पाये पचपन के तो याद रखेंगे यह लेखनी पचपन और बचपन पर
ReplyDeleteare pachpan me ye hall hai !!yaha to paisath me abhipahar par chadhna utarna chal raha hai!!!!
ReplyDeleteshandar, adbhut, dil ko gudgudane wali kriti...aisi kavita jisme dard samahit ho kintu shabdon ka aisa shandar prayog dil ko gudguda deta hai
ReplyDeleteआजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे
shandar abhivyakti
Nice post.
ReplyDeleteआदमी मज़े में मौत को भूल जाता है।
फ़िरंगी हो या जंगी, अंजाम भूल जाता है।।
आपकी रचना अच्छी है लेकिन कुछ सेना और पुलिस के बारे में भी बता देते तो और भी अच्छी हो जाती।
मज़ा आ गया पढ़कर और हंसी भीं.
शुक्रिया !
समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape
बहुत ही अच्छी लगी कविता आपकी. आभार.
ReplyDeleteगजब की वास्तविक कविता!
ReplyDeleteक्या बहाव है आपकी कविता में....कुछ पकडे न रहें तो अच्छे - अच्छे इस रचना के बहाव में बह जायें. सचमुच एक बहुत बढ़िया गीत है ये....
ReplyDelete'आ जा वापस प्यारे बचपन,पचपन बड़ा सताए रे '
ReplyDelete..............वाह रविकर जी .....पचपन बड़ा निष्ठुर है , दर्द अथाह है ......प्रस्तुति गज़ब की
वाह रविकर जी ...
ReplyDeleteगये सभी परदेस कमाने, विरह-गीत मन गाये रे |
रूप बदल के आजा बचपन, बाबा बहुत बुलाये रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा, मन-गठिया तडपाये रे |
आजा वापस प्यारे बचपन, पचपन बड़ा सताए रे ...
अब कुछ लिखने की स्थिति में नहीं हूँ ...