Friday 6 July 2012

ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़-

कौशलेन्द्र 
अपने घर के लिए हम, देते उन्हें उजाड़ |
ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ |

देते मिटा पहाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
रहे धरा नभ फाड़, चलाते जाते धंधे |

रतनजोत का तेल, साइकिल काजू सपने |
महानदी छिपकली, बचाते जीवन अपने || 

अगला जीवन

Maheshwari kaneri 
  अभिव्यंजना  

गाना गाना भोर का, संध्या बेला पास |
मन का पाखी नासमझ, नहीं आ रहा रास |

नहीं आ रहा रास, आस का झूला झूले |
करे हास-परिहास, हकीकत शाश्वत भूले |

दीदी की यह बात, नये परिधान पहन कर |
नया देश परिवेश, देखना है जी भरकर ||

"ढूँढ सके तो ढूँढ"

Sushil
"उल्लूक टाईम्स "

 ढूँढ़ ढूँढ़ के पा गया, आखिर एक-स्थान |
महाशांति नीरव महल, चाहे कहो मकान |


चाहे कहो मकान, कुंवारा भी पा जाता |
किन्तु करे अफ़सोस, नहीं जो लड्डू खाता |


अंधियारे में लैम्प, श्वेत कपडे में घूमे |
चले पैर उलटाय, फ़्लैट छ: फुट का चूमे ||

3 comments:

  1. ये जब कमेंट दे जाते हैं
    तो कविता कमेंट हो जाती है
    और इनके कमेंट कविता ।

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