Sunday 22 July 2012

वीरांगना प्रणाम, बहुत आभार शिवम् जी -रविकर



 

 कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल का निधन

शिवम् मिश्रा 


नेता जी की खास थी, भारत की थी नाज |
लक्ष्मी दुर्गा थी बनी, कांपा इंग्लिश राज |


कांपा इंग्लिश राज, आज त्यागा यह काया |
जिसके प्रति न मोह, रखी न कोई माया | 


वीरांगना प्रणाम, बहुत आभार शिवम् जी |
ब्लॉग-जगत कृतग्य, हमें जो तुरंत खबर की |

  का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)

 (Arvind Mishra) 
(1)
 बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
 प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)
अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल है पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ, इन्हें फिर कभी पढाओ ।।
 

चोर हूँ मैं

रचना दीक्षित 


बड़ा भला यह चोर है, बाकी सभी छिछोर ।
धन दौलत हीरे रतन, लालच रहे अगोर ।
 
लालच रहे अगोर,  चोर यह चोरा चोरी ।
चोर-गली से जाय, चुराए समय कटोरी ।

चम्मच से चुपचाप, अकेले पान करे है ।
यह चोरित अनमोल, चीज को पास धरे है ।।



छुट्टी कुछ दिन और अभी

sidheshwer 

हुक्का-पानी बंद की, चिंता रही सताय ।
डाक्टर साहब इसलिए , रहे हमें भरमाय ।

 रहे हमें भरमाय, नदी के तीर जमे हैं ।
प्राकृतिक परिदृश्य, मजे से मस्त रमे हैं ।

एक मास का समय, दिया रविकर ने पक्का ।
सीधे हों सिद्धेश, नहीं तो छीनें हुक्का ।।

" मेरा मन पंछी सा "

Reena Maurya 
तिनका मुँह में दाब के, मुँह में उनका नाम ।
सौ जोजन का सफ़र कर, पहुंचाती पैगाम ।

पहुंचाती पैगाम, प्रेम में पागल प्यासी ।
सावन की ये बूंद, बढाए प्यास उदासी ।

पंछी यह चैतन्य, किन्तु तन को न ताके ।
यह दारुण पर्जन्य, सताते जब तब आके ।।

तुम्‍हें ढूंढने के क्रम में ...

सदा  
  SADA  


बड़े पुन्य का कार्य है, संस्कार आभार ।
 तपे जेठ दोपहर की, मचता हाहाकार ।

मचता हाहाकार, पेड़-पौधे कुम्हलाये ।
जीव जंतु जब हार, बिना  जल प्राण गँवाए ।

हे मूरत तू धन्य , कटोरी जल से भरती ।
दो मुट्ठी भर कनक , हमारी विपदा हरती ।।



पिछले डेढ़-दो साल में यही तोप मारी है सरकार ने.


सबकी उन्नति है हुई, दो नम्बरी अनेक ।
क्रमश: पाते जा रहे, कुर्सी नंबर एक ।

 कुर्सी नंबर एक, कहीं एंटोनी राहुल ।
कहीं शरद की खीज, कहीं है सब कुछ ढुल-मुल  ।

लेकिन गुल हो रही, यहाँ बत्ती जनता की ।
मंहगाई की मार, करम ना एकौ बाकी ।।


मी लाड ! इसे स्कूल में डाल दिया जाये !



सकारात्मक सोच है, बाबा स्वामी एक ।
आदरणीय मोरार जी, बन्दे भले अनेक ।

बन्दे भले अनेक, नई थेरेपी पाई  ।
गुरुजन सारे नेक, करें न कभी पिटाई ।

कोई फिजिकल दंड, नहीं अब देते टीचर ।
केमिकल का यह दौर, मूत्र औषधि भी रविकर ।।




अमरीका नहीं देखा उसने जिसने लास वेगास नहीं देखा

veerubhai
ram ram bhai

नंगों के इस शहर में, नंगों का क्या काम ।

बहु-रुपिया पॉकेट धरो, तभी जमेगी शाम ।

तभी जमेगी शाम, जमी बहुरुपिया लाबी ।

है शबाब निर्बंध, कबाबी विकट शराबी ।

मन्त्र भूल निष्काम, काम-मय जग यह सारा ।

चल रविकर उड़ चलें, घूम न मारामारा ।।

भोग शिखर पर वे खड़े, कर्म शिखर पर राम |
सुख दोनों ही अहर्निश, भोग रहे अविराम |
भोग रहे अविराम, शाम से सुबह करें वे |
पुन: सुबह से शाम, जाम पर जाम भरें वे |
रविकर अपने राम, कर्म को समझें पूजा |
यही परम सुख धाम, नहीं घर खोजूं दूजा ||

10 comments:

  1. बेहतरीन लिंक्‍स ...आभार

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  2. उड़े कबूतर गगन में,तोते रहे न हाथ|
    बादल-बरसा आस में,सूख गए ज़ज़्बात||

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    1. तोते उड़ते हाथ के, फंसे कबूतर जाल |
      चतुर शिकारी आ रहा, आगे कौन हवाल ??

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  3. बहुत सुन्दर..

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  4. सभी मर्द बचपन में अपनी माँ के प्रशिक्षण में रहते हैं. अगर माँ अपनी गोद के लाल को सही-ग़लत की तमीज़ दे और हमेशा इन्साफ़ करना सिखाये तो औरतों पर होने वाले ज़ुल्मों को रोका जा सकता है.

    "बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।"

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  5. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २४/७/१२ मंगल वार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं

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  6. नेता जी की खास थी, भारत की थी नाज |
    लक्ष्मी दुर्गा थी बनी, कांपा इंग्लिश राज |
    श्रृद्धांजलि उस विराट रूपा को .शुक्रिया रविकर भाई .आपका काव्यात्मक क्षेपक जोड़ दिया गया है .

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  7. निगले खाय समूच, हाजमा दीमक जैसा ।
    कुर्सी जितनी ऊंच, चढ़ावा चाहे वैसा ।।

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