Saturday 14 July 2012

हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-

"बहुत कम होते हैं "


चश्मे का पड़ता फरक, दरक जाएगा चित्र ।
हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र ।

भागे भगवा मित्र, छीन कर कागज़-कूँची  ।
हालत बड़ी विचित्र, सोंच दोनों की ऊंची ।

किन्तु संकुचित  दृष्टि, दिखाए खूब करिश्मा ।
कितना भी बदरंग, बदल पाते ना चश्मा ।। 

मौन और मौन !

रेखा श्रीवास्तव at hindigen
मौन रहे निर्दोष गर, दोष सिद्ध कहलाय ।
अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।
झूठे शोर मचाय,  सुने जो हल्ला गुल्ला ।
मौन मान संकेत, फैसला  देता  मुल्ला ।
पर काजी की पहल, शर्तिया करे फैसला ।
  मौन तोड़ ऐ सत्य, तोड़ मत कभी हौसला ।।

दो ब्लॉगर, दो कवि और एक काव्य गोष्ठी।

देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा  

आदमी की आँख में बनता जहर ।
पान पर भी  टूटता जुल्मी कहर-

अंदाज बदला आज चूना यूँ लगा -
पानी पिला के कैंचियाँ दें पर क़तर ।

हास्य-रस जैसा बना रस था मगर 
स्वाद सड़ते सोरबे सा हर शहर ।

प्रेम रस में व्यस्तता का लवण ज्यादा 
बस पसीने से हुवे सब तर-बतर ।। 

अब इसी में खोजना है जिंदगी-
चारो दिशाओं ने दिया उलझा मगर ।।




7 comments:

  1. Replies
    1. मुबारक हो झंडा फहराने के लिए !

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  2. बहुत बढ़िया...
    सादर
    अनु

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  3. उल्लूक टाइम्स,,,,

    बना रहे है पोस्टर, बिना भरे ही रंग
    बिन चश्मे के देखते,लगते है बदरंग,,,,,,

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  4. मत कर मत कर किसी दिन धर लिया जायेगा
    आदमी नहीं उल्लू के साथ एक पकड़ लिया जायेगा ।

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  5. Replies
    1. जी |
      बस आदत सी पद गई है-
      कोई पोस्ट पढ़ी बस झट से कर दी तुक बंदी-
      आपको पसंद आई-
      आभार-
      अच्छी रचनाओं के लिए कृपया-
      http://dcgpthravikar.blogspot.in/

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