Tuesday 24 July 2012

घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी-रविकर


मानस में नारी विमर्श:समापन पोस्ट!


बेनामी नामी कई, रखें राय बेबाक |
मुद्दे को समझे बिना, गजब घुसेड़ें नाक |
गजब घुसेड़ें नाक, तर्क पर बड़ी पकड़ है |
थी कालेज में धाक, तभी तो दंभ अकड़ है |
गुरुवर का आभार, बना रविकर अनुगामी |
घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी || 

का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)

 (1)

बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)

अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल यह  पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ,  कभी फिर और पढाओ ।। 


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