Thursday, 30 June 2011

नोंक-झोंक-2 उर्फ़ सरेंडर

नोंक-झोंक-1    वो  

पैर बाहर अब निकलने लग पड़े | खींच के चादर जरा लम्बी करो || 
                 आप
पैर अपने मोड़ कर रखो तनिक, दूसरी चादर मिले, धीरज धरो ||
                  वो 
आपके कम्बल से आती है महक  ओढ़ कर पीते हुए घी क्यूँ चुआये ||
                आप 
रोज तिल का ताड़ तुम बेशक करो, कान पर अब जूं हमारे न रेंगाये ||                
(अपनी  टांग  उघारिये  आपहिं  मरिये  लाज)
पर -नोंक झोंक परसनल कहाँ रही--
                                वो
अपनी गरज तो बावली, दूजा नहीं दिखाय | अस्सी रूपया रोज का,  पानी   रहे  बहाय  ||
                                     आप
हो बड़की शौकीन तुम, मलमल लहँगा पाय | मैट्रिक्स  पार्लर  घूमती, कौआ  रही  उड़ाय ||  
                    वो 
सींग काटकर के सदा,  बछड़ों में  घुस जात  | फ़ोकट में दिन-रात जो, झूठे कलम घिसात ||  

बस-बस बस ---
            आप
जीभ को तालु से लगा, गया छोड़  मैदान || कम्प्यूटर  पर बैठ के, साफ़  बचाई जान  ||
नोंक-झोंक  के बाद--लौट के बुद्धू घर को आये  

                        आप
सब  कुछ  बाहर  छोड  के  लौटा  तेरे पास |
भूखा तेरे प्यार का, डाल जरा सी घास ||

                        वो
घंटों  से तू था  किधर, रहा था दाने डाल ||
नहीं फंसी चिड़िया तभी, शाकाहारी ख्याल ||

                       आप
सांप  नहीं हम हैं प्रिये,  खायें मात्र हवा ||
ऊंट को जब-तब चाहिए,  दारु-भोज-दवा ||

                           वो
नीति-नियम से पक रहा, बासी न बच जाय |
हो राशन  बर्बाद क्यूँ ,  काहे  कुक्कुर खाय || 

                          आप
नित कोल्हू के बैल सा, खटता आठो याम |
कीचड़  में  टट्टू फंसा, होवे काम तमाम  ||

नाच  नाचता मैं रहूँ , पल्ला पकड़ा तोर |
गाढ़े के साथी तुम्ही, भूख मिटा दो मोर ||

                     वो
एक आँख से रो रहे, दूजी हंसती जाय |
करवट बैठे ऊंट उस, जो पहाड़ बतलाय ||  

Tuesday, 28 June 2011

नोंक-झोंक

                        वो  
पैर बाहर अब निकलने लग पड़े |
खींच के चादर जरा लम्बी करो || 
                 आप
पैर अपने मोड़ कर रखो तनिक,
दूसरी चादर मिले, धीरज धरो ||
                  वो 
आपके कम्बल से आती है महक 
ओढ़ कर पीते हुए घी क्यूँ चुआये ||
                आप 
रोज तिल का ताड़ तुम बेशक करो,
कान पर अब जूं हमारे न रेंगाये ||
                
(अपनी  टांग  उघारिये  आपहिं  मरिये  लाज)
पर -नोंक झोंक परसनल कहाँ रही--
                                वो
अपनी गरज तो बावली, दूजा नहीं दिखाय |
अस्सी रूपया रोज का,  पानी   रहे  बहाय  ||
                                     आप
हो बड़की शौकीन तुम, मलमल लहँगा पाय |
मैट्रिक्स  पार्लर  घूमती, कौआ  रही  उड़ाय ||  
                    वो 
सींग काटकर के सदा,  बछड़ों में  घुस जात  |
फ़ोकट में दिन-रात जो, झूठे कलम घिसात ||  

बस-बस बस ---            आप
जीभ को तालु से लगा, गया छोड़  मैदान ||
कम्प्यूटर  पर बैठ के, साफ़  बचाई जान  ||



Monday, 27 June 2011

6- दोहे

                 "बिदेशी-बैंक"
घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||

लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष |
जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष || 

                  " वंशवाद"
कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज  |
बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||

बेटा  बैठा  गोद  में, चलेगा कैसे  वंश |
वंशवाद  की  देवकी, मारे समया-कंस || 

                "बड़ी-कम्पनी" 
केंचुआ दो टुकड़े हुआ, धरती धरे धकेल |
बढ़ी  उर्वरा  शक्ति से,   खूब  बटोरें  तेल ||  

रात  चौगुनी वृद्धि हो, धीरू-धीरज-धीर |
राज-काज के राज से, बाढ़े  बहुतै  वीर ||

शुक्रिया ||

पूरी   होती
मन  की  मुराद 
जब   चाह से  |
या  किसी 
बन्दे की 
सलाह से |
शुक्रिया 
कहता रहे ,
अल्लाह से  ||
कहता रहे ,
अल्लाह से  ||

रहमो-करम
से ही चले 
कायनात सारी--
मुश्किलें 
हटती गईं --
दिखती गई 

 

Sunday, 26 June 2011

विविध दोहे

                                    
प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े,   कर   देता   है   मार  ||


आम  सभी  बौरा  गए,  खस-खस  होते ख़ास |
दुनिया  में  रविकर  मिटै, मिष्ठी-स्नेह-सुबास || 


सरपट  बग्घी  भागती,  बड़े  लक्ष्य  की ओर |
घोडा  चाबुक  खाय  के,  लखे  विचरते  ढोर || 


चले  हुए   नौ-दिन   हुए,  चला  अढ़ाई  कोस |  
लोकपाल का करी शुभ्र, तनिक होश में पोस ||  करी  =  हाथी

 
कुर्सी   के   खटमल   करें,  मोटी-चमड़ी  छेद |
मर  जाते  अफ़सोस  पर,  पी के खून सफ़ेद  ||  

म्याऊँ सोच रही गद्दी पर देख बिलौटा बैठे कब-

Saturday, 25 June 2011

स्वतन्त्र - दोहे

सोखे  सागर  चोंच   से, छोट टिटहरी नाय |
इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

सौदागर   भगते   भये,   डेरा  घुसते   ऊँट |
जो लेना वो  ले चले,   जी-भर  के  तू  लूट ||

कछुआ  -  टाटा   कर   रहे ,   पूरे   सारोकार | 
खरगोशों   की   फौज  में,  भरे पड़े  मक्कार ||

कोशिश  अपने  राम  की,  बचा  रहे  यह  देश |
सदियों  से  लुटता  रहा,   माया  गई  विदेश  ||

कोयल  कागा  के  घरे,   करती  कहाँ   बवाल  |
चाल-बाज चल न सका,  कोयल चल दी चाल ||

प्रगति   पंख   को   नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना   क्यूँ   करे ,  सारा  सभ्य  समाज  || 

रिश्तों   की   पूंजी  बड़ी , हर-पल संयम *वर्त |     *व्यवहार कर  
पूर्ण-वृत्त   पेटक  रहे ,  असली  सुख   *संवर्त ||     *इकठ्ठा


Friday, 24 June 2011

नहीं चाहिए पैसा--

कर
असनायी |
सनेही
की नायीं ||
किन्तु
अगर  
अन्देशा,
भेज
सन्देशा --
पिय के देशा ||


छोड़ बिदेशा ||
आजा
है जैसा ||
नहीं चाहिए
पैसा ||
हमेशा-हमेशा ||
जरुर देंखें ये खून के कतरे -- 
12 जुलाई 2011 को 25 वाँ मुर्गा कटेगा

                                                                                        
   

राहत आई राहत आई

(1)
भूलते  प्रियतम हमारे, प्यार पर प्रतिबन्ध प्यारे |
बन्द  खिड़की-धूप-तारे,  आत्मा  हा-हा   पुकारे  |
छोड़ के   आगार-कारे,  तोड़  के  सम्बन्ध  सारे--
मिल  मुझे  मेरे  सहारे,  आ गई  दर  पे  तुम्हारे |

तुम रहे क्यूँ  न कुंआरे,  क्यूँ  मुझे बे-मौत मारे || 

 (2)

दुश्मन ने घर आग लगाईं, सूखा   हो  या बाढ़  बहाई |
रेल लड़ी  या बस टकराई, जब  भी कोई विपदा आई |
राजकोष करता भरपाई, घायल-मन की व्यथा बढाई|
तड़प-तड़प मरती तरुणाई, करी  दवाई, कड़ी - दबाई |

करते साहब  खुब  पहुनाई , राहत  आई  राहत  आई || 

Thursday, 23 June 2011

दोहे

               21 वीं शती
पति परमेश्वर की तरह, छवि आदर्श बनाय |
कन्धे पर बन्दूक धर, पीछे   खड़ीं   लुकाय ||

त्यागी  और  महान  हैं, बिलकुल न बेईमान |  
पति की सम्पत्ति पुत्र  का, देती  नेक बयान ||

प्रगति  पंख  को  नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना  क्यूँ करे ,  सारा  सभ्य  समाज  ||

बैंकों  में  खाता  खुला,  खता कहाँ  से  मोर |
बड़े मियां छोटे मियां,  जानें  रिश्वत-खोर ||

स्वामी, दत्ता अमल दा, जेठ मलानी लोग |
के जी बी, एक्सप्रेस भी, करें भयंकर ढोंग ||

गर इतना धन है जमा, जाऊं  इटली भाग |
पहचाने दुर्भाग्य  निज, लगा  रहे  जो  दाग || 

लिश्तेंस्ती से  बैंक  का, हमने  सुना  न नाम | 
कौन-कौन  से  केश  का,  पैसा  जमा तमाम ||

हत्यारों  पर  भी  रहम,  बच्चों  में   पुरजोर |
मानहानि के  केश में,  रही  रूचि  न   मोर ||

कश्मीर (1947)

चाचा  चालें चल  चुके, चौपट  चम्प-गुलाब |
शालीमार-निशात सब, धूल-धूसरित ख़्वाब ||

चारों  दिशा  उदास  हैं,  फैला  है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले,   मारे  शासन  डंक ||

                 भ्रष्टाचार         

    भूमंडलीय फिनोमिना (1983 )


माता  के  व्यक्तव्य से,  बाढ़ा हर दिन लोभ |
भ्रष्टाचारी  देव  को,   चढ़ा  रहे  नित   भोग  ||

पानी  ढोने का    करे,  जो बन्दा  व्यापार  |
मुई प्यास कैसे भला, सकती उसको मार ||

काजल की हो कोठरी, कालिख से बच जाय |
हो  कोई  अपवाद  गर , तो उपाय बतलाय    || 

             मिस्टर क्लीन (1989)
माता के उपदेश को , भूले मिस्टर क्लीन,
राज    हमारा   बनेगा ,  भ्रष्टाचार विहीन |
भ्रष्टाचार   विहीन,  नहीं  मैं  माँ  का बेटा,
सारे  दागी  लोग ,  अगरचे   नहीं  लपेटा |
पर"रविकर"आदर्श, बड़ा वो चले दिखाने |
दागै लागे तोप,  उन्हीं  पर  कई  सयाने  ||
 

Tuesday, 21 June 2011

बचा लो धरती, मेरे राम

सात अरब लोगों का बोझ,  अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !

क्राइस्ट-काल का जोड़ा अबतक, पूरा चालीस लाख हो चुका |
पेड़  लगा  पाया  बस दो  ठो, लेकिन चालीस लाख खो चुका |
भीषण   युद्ध,   क्रुद्ध   रोगाणु ,  सत्यानाशी   बीज   बो  चुका |
सूखा - बाढ़  अकाल  सुनामी,   जीवन  बारम्बार    रो  चुका||

सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर  दिन  दाम, बचा लो  धरती,  मेरे  राम ! 2 !

जीवन   शैली   में  परिवर्तन,  चकाचौंध,  भौतिकता  भोग |
खाना - पीना मौज मनाना, काम- क्रोध- मद- लोभी लोग |
वर्तमान पर नहीं नियंत्रण,  कर  अतीत  पर  नव - प्रयोग |
जीव-जंतु का  दुष्कर  जीना, लगा  रही  धरती  अभियोग||


बढे  मरुस्थल  बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप  |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !

स्वार्थ में अँधा मानव करता, सागर के अन्दर विस्फोट |
करे  सुनामी  पैदा  खुद  से,  रहा  मौत  को  हरदम पोट |
विकिरण का खतरा बढ़ जाये, पहुंचा  रहा  चोट  पे चोट |
जियो और जीने दो  भूला, चला  छुपाता  अपनी  खोट  | 

हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही  बवंडर की मनमान |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !

बढ़ा रहे  धरती  पर  बोझ, नदियों  पर  ये  बाँध  विशाल |
गर्भ  धरा  का  घायल  करके,  चला बजाता अपने गाल |
एवरेस्ट  पर  पिकनिक करके, छोड़े  करकट करे बवाल |
मानव  पर  है  सनक   सवार,   ऊँचे   टावर   ऊँचे  मॉल |

जीव - जंतु  के  कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार  |
दोहन शोषण हुआ हराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !

कई  जातियाँ  ख़त्म  हो  चुकी,  कई  ख़त्म  होने  वाली |
मानव  अपना  शत्रु बन चुका, काट  रहा  खुद  की  डाली |
दिन-प्रतिदिन  संसाधन चूसे, जिन से  धरा  उसे  पाली |
भौतिक-सुख दुष्कर्म स्वार्थ का, मानव अब गन्दी गाली |

जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले | 
सूक्ष्म तरंगो का कोहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !

गंगा  का  पानी  जुड़ता  था, प्रीतम  की  जिन्दगानी  से |
हर  बाला  देवी  की   प्रतिमा   जुडती   मातु   भवानी  से |
दुष्टों  ने  मुहँ  मोड़  लिया  पर  गौरव-मयी   कहानी   से  |
जहर  बुझी  जिभ्या  नित  उगले, उल्टा-पुल्टा वाणी से |

मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार  |
सूरज सा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !

आरुषि - प्यारी,  कांड  निठारी, ममता  बच्चे  को मारे |
कितने  सारे  बुजुर्ग  हमारे,  सिर  पटकें  अपने  द्वारे  |
खून - खराबा,  मौत - स्यापा,  मानवता  हरदम  हारे |
काम-बिगाड़े किन्तु दहाढ़े,  लगा  जोर  जमकर नारे |

मानव - अंगों  का  व्यापार, सत्संगो  का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 ! 


आफिस-आफिस

हर  इंसान चहेता है, 
जो माल खिलाये |
हर वो  भैंस  दुलारी है, 
जो दूध पिलाये ||
साहब तो मगरूर है | दुनिया का दस्तूर है ||

 
मुर्गी है तो अंडा दे--
मुर्गा-बकरा कट जाये |
किन्तु नहीं कुछ पल्ले  तो-
हट जाये, बस हट जाये--
पद के मद में चूर है | दुनिया का दस्तूर है ||

अंधेर है,अंधेर है


Monday, 20 June 2011

खोया इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||

खोया  इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी |
खोया  इक  फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||
खोया  इक  फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||
चार चाँद का सुन्दर चंदा  
नजर लगाये  कोई गन्दा
कंगाली में आंटा गीला
ढूंढ़ के ला दो भूला-बन्दा
सुबह गई अब हुआ अँधेरा, सुनो गुरूजी |
खोया  इक  फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||

Sunday, 19 June 2011

रक्त-कोष की पहरेदारी--(पूरी रचना)

मिला बाज को काज अनोखा, करता चिड़ियों की रखवाली |

शीत-घरों की सकल व्यवस्था, चूहों ने चुपचाप सँभाली |

दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, गाय-भैंस पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने अपनी हद में, मत्स्य-केंद्र मंजूर कराया ||

महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
अंग-रक्षकों ने मालिक की, ले ली जब से मौत-सुपारी |

तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
जल्लादों ने झपटी झट से, पूजा-घर की कुल मुख्तारी ||

संविधान की रक्षा करने, चले उचक्के अत्याचारी ||
तो रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई ||

Saturday, 18 June 2011

कश्मीर (1947)

चाचा  चालें चल  चुके, चौपट  चम्प-गुलाब |
शालीमार-निशात सब, धूल-धूसरित ख़्वाब ||

चारों  दिशा  उदास  हैं,  फैला  है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले,   मारे  शासन  डंक ||

                 भ्रष्टाचार 
         भूमंडलीय फिनोमिना (1983 )

माता  के  व्यक्तव्य से,  बाढ़ा हर दिन लोभ |
भ्रष्टाचारी  देव  को,   चढ़ा  रहे  नित   भोग  ||

पानी  ढोने का    करे,  जो बन्दा  व्यापार  |
मुई प्यास कैसे भला, सकती उसको मार ||

काजल की हो कोठरी, कालिख से बच जाय |
हो  कोई  अपवाद  गर , तो उपाय बतलाय    || 

             मिस्टर क्लीन (1989)
माता के उपदेश को , भूले मिस्टर क्लीन,
राज    हमारा   बनेगा ,  भ्रष्टाचार विहीन |
भ्रष्टाचार   विहीन,  नहीं  मैं  माँ  का बेटा,
सारे  दागी  लोग ,  अगरचे   नहीं  लपेटा |
पर"रविकर"आदर्श, बड़ा वो चले दिखाने |
दागै लागे तोप,  उन्हीं  पर  कई  सयाने  ||

Wednesday, 15 June 2011

रक्त-कोष की पहरेदारी

चालबाज, ठग, धूर्तराज   सब,   पकडे   बैठे   डाली - डाली |
आज बाज को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली |

दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने  अपनी हद में,  मत्स्य-केंद्र  मंजूर  कराया ||            

महाघुटाले - बाजों   ने   ली,  जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट  से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||

तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
तो रक्त-कोष  की  पहरेदारी,  नर-पिशाच के जिम्मे  आई ||

छोड़ के अपने गाँव

Friday, 10 June 2011

माथे से अब खून बहेगा

कोठर  में  सोई  गौरैया ,   मार  झपट्टा  बाज  उठाये |
बिन प्रतिरोध सभी चूजों को , वो अपना आहार बनाए ||
पाण्डव  के  बच्चे  सोये  थे,  अश्वस्थामा  महाकुकर्मी  |
गला रेत कर, बहुतै खुश हो, दुर्योधन को खबर सुनाये ||

उस भारत की दुखती घटना, नव-भारत फिर से दोहराए
राम की लीला से घबरा कर, आत्मघात हित कदम उठाये | 
पागल सा भटकेगा शापित, जन्म से शोभित मणि छिनाये--
सदा  खून   माथे   से   बहता,  अश्वस्थामा  नजर  चुराए  ||

 

Wednesday, 8 June 2011

पहचानो लोकतंत्र के कातिलों को

उन  दरख्तों  के  बगल  में  खून  के  छींटे  दिखे |
तख्तियों पर  कातिलों  के  नाम  यूँ  पाए  लिखे ||

गुरुमुखी में था लिखा "भलभेचना" पढ़कर लगा |
पहचानता मकतूल होगा, था कोई उसका सगा ||

पास  काले  कोट  सा  गाउन  पड़ा  था  घास  पर |
खून-कीचड़ में सना था, "सिलवटें-बल" तर-बतर ||

गोल त्रिभुज और डब्ल्यू सी  दिखी इक वर्ण-माला |
भारी तबाही थी मचाई, जुड़ गया अध्याय काला ||
 
जो उधर  जिन्दा  बचे,  उनका यही पैगाम है --
संघर्ष  का आगाज  होवे,  राष्ट्र-हित  अंजाम  है ||  
 

Monday, 6 June 2011

बहुतै लगा, देश को चून

             (1)
कांग्रेसी --
तिगनी का नाच नचायें तो 
पूरा देश  बेबस नाचें ||
जब राजघाट पर---
राष्ट्र-भक्ति की धुन पर सुषमा नाचीं
तो कांग्रेसी प्रवचन बाँचें  ||
                     (2)
हर एक्शन का प्रति रिएक्शन 
                  "न्यूटन" का नेचुरल कानून 
सुधरो चाहे नरक सिधारो 
                   बहुतै लगा, देश को चून   
                   
                           (3) 
हिटलर ने वाहिनी बनाई थी कुत्तों की |
करे पुलिस में, कई देश कुत्तों की भरती ||
भारत लेकिन बहुत अनोखा देश लगा---
अलग से कुत्तों की भर्ती की नहीं जरुरत ||
                            (4)
जज    ने  पूछा   एक   चोर   से   बोलो भाई--
चोरी    जैसा   काम    अकेले   क्यों  करते हो ??
बेशर्मी   से   हंसकर  बोला --  सुनिए सर  !
दुनिया से विश्वास आजकल उठा समझकर  ||
                  

Friday, 3 June 2011

प्राइवेट शिक्षक ??

भूमि-बन्दन कर,  धरा पर-- पैर धरता  है  | 

हस्त-दर्शन कर, निबटकर--सैर करता है || 

फिर नहाके  पाठकर, बासी चपाती से    

न्यूज-ताज़ी को निगलते,  पेट भरता है ||


जद्दोजहद से बेखबर जब किस्मत सोती है
बेहतरी  की  कोशिशें,  नाकाम  होती  है  ||

खर्च घर का चल रहा सम्पूर्ण, वेतन से
कुछ कमाई और करता रोज टयूशन से ||

खर्च मुश्किल से ही  पूरे,  पूरे मास का
दाग रक्खे दूर  लेकिन अपने दामन से ||

कड़ी मेहनत 'रविकर' सुबहो-शाम होती   है
बेहतरी की कोशिशें,  नाकाम  होती  है  || 

Wednesday, 1 June 2011

शालिनी कौशिक के आलेख

Ravikar ने कहा…
मन्त्री  से  सन्तरी  बड़े,  इन के   लागौ  गोड़ 
काम बनावें चुटुक से, नीति-नियम को तोड़,
नीति नियम को तोड़, राडिया नीरा जादौ
कर देव  चवन्नी खर्च , करोड़ों सौदे साधौ
है  "रविकर" अंधियार, कनी मनमौजी राजा 
बड़ी देर  से बजा, देश का मारू बाजा  
भ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन? 

भारतीय ब्लॉग लेखक मंच पर आज महाभारत -२ के परिणाम घोषित किये गए हैं और घोषित परिणामों के अनुसार  शालिनी कौशिक के निम्न आलेख को तीसरा  स्थान प्राप्त हुआ है-


       करप्शन कप का जारी खेल,पैसे की है रेलमपेल,
कलमाड़ी के चौके तो ए-राजा के छक्के,सब हैं हक्के-बक्के,
बना कर गोल्ड नीरा यादव हो गयी क्लीन-बोल्ड,
नीरा राडिया की फील्डिंग,और वर्मा-भनोट की इनिंग,
सी.बी.आई ने लपके कुछ कैच,
हसन अली मैन ऑफ़ द मैच ,
आदर्श वालों की बैटिंग,
बक अप जीतना है वर्ल्ड करप्शन कप.