वो
पैर बाहर अब निकलने लग पड़े |
खींच के चादर जरा लम्बी करो ||
आप
पैर अपने मोड़ कर रखो तनिक,
दूसरी चादर मिले, धीरज धरो ||
वो
आपके कम्बल से आती है महक
ओढ़ कर पीते हुए घी क्यूँ चुआये ||
आप
रोज तिल का ताड़ तुम बेशक करो,
कान पर अब जूं हमारे न रेंगाये ||
(अपनी टांग उघारिये आपहिं मरिये लाज)
पर -नोंक झोंक परसनल कहाँ रही--
वो
अपनी गरज तो बावली, दूजा नहीं दिखाय |
अस्सी रूपया रोज का, पानी रहे बहाय ||
आप
हो बड़की शौकीन तुम, मलमल लहँगा पाय |
मैट्रिक्स पार्लर घूमती, कौआ रही उड़ाय ||
वो
सींग काटकर के सदा, बछड़ों में घुस जात |
फ़ोकट में दिन-रात जो, झूठे कलम घिसात ||
बस-बस बस --- आप
जीभ को तालु से लगा, गया छोड़ मैदान ||
छोटी में काम चला लो जी
ReplyDeleteपैर अपने मोड़ कर रखो तनिक,
ReplyDeleteदूसरी चादर मिले, धीरज धरो
तेते पांव पसारिये जेते लाम्बी सौर इसलिए ये तो करना ही होगा.बहुत सार्थक प्रस्तुति..
वाह...व...बहुत खूब...आनद आया.
ReplyDeleteनीरज
ravi ji
ReplyDeleteaap mere blog par aaye iske liye bahut bahut dhanyvaad.
aapki rachna nisandeh prateekatmak avam vyangatamakta liye hue bahut hi badhiya lagi .
bahut bahut badhai --------aapne puchha hai ki anusaran kaise karein---to aap mere blog par aakar jahan anusaran karen likha rahata hai us par clik karein to thodi der me vo page khul jaata hai jis par likha rahta hai ki aap hamaare samarthak ban gaye hain fir done ya sampann likha hua aayega us par fir clik karein ----bas
itna hi karna hai .
punah badhai ke saath
poonam
आपके लिखे शेरो और दोहों का जवाब नही है गुप्ता जी!
ReplyDeletebahut khoob likha hai aapne....sabhi dohe acche lage.
ReplyDeleteevery line says something very thoughtful
ReplyDeletepoem
लाजवाब प्रसतुति
ReplyDeleteसुन्दर... नोंक-झोंक..अच्छा लगा..आभार
ReplyDeletebahut accha with fun
ReplyDeletesamrat bundelkhand