कौआ लाय सुराज, सफल कोयल मन्सूबे-
कौआ कोयल बाज में, होड़ मची है आज |
कोयल के अंडे पले, कौआ लाय सुराज |
कौआ लाय सुराज, सफल कोयल मन्सूबे |
हर सूबे में खेल, घोसला साला डूबे |
बाज आय नहिं बाज, आज भी इसका हौवा |
बहुमत कैसे पाय, उधर कौआता कौआ ||
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दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे-
खरी खरी कह हर घरी, खूब जमाया धाक |
अपना मतलब गाँठ के, किया कलेजा चाक |
किया कलेजा चाक, देश भर में अब घूमे |
दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे |
डाल गए मझधार, धोय साबुन से कथरी |
मत मतलब मतवार, महज कर रहे मसखरी ||
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पोल खोलते पोपले, सन चौदह के पोल |
किन्तु ढोल में पोल है, कौन सकेगा खोल |
कौन सकेगा खोल, खोल में बैठे छुपकर |
रे मौसेरे चोर, प्रलापी अबतो चुपकर |
कर्महीन-ई-मान, फटाफट रस्ता नापो |
नहीं काम पर ध्यान, व्यर्थ में कागज़ छापो ||
किन्तु ढोल में पोल है, कौन सकेगा खोल |
कौन सकेगा खोल, खोल में बैठे छुपकर |
रे मौसेरे चोर, प्रलापी अबतो चुपकर |
कर्महीन-ई-मान, फटाफट रस्ता नापो |
नहीं काम पर ध्यान, व्यर्थ में कागज़ छापो ||
हमारे महानगरों में कूड़ा कचरा एक भयावह समस्या …
Suman
चरावरी रविकर करे, हरदिन व्यर्थ प्रलाप |
कवि खातिर वरदान ही, पाठक खातिर शाप |
पाठक खातिर शाप, कीजिये खातिरदारी |
कूड़ा-कचरा साफ़, नहीं फैले बीमारी |
लेकिन कई कमाँय, मात्र है एक आसरा |
पाएं नियमित आय, फेंकते हम जो कचरा-
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ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी-
दखलंदाजी खेल में, करती खेल-खराब |
खले खिलाड़ी कोच को, लेकिन नहीं जवाब |
लेकिन नहीं जवाब, प्रशासक नेता हॉबी |
हॉबी सट्टेबाज, पूँछ कुत्तों की दाबी |
ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी |
बड़ी व्यस्त सरकार, करे क्यूँ दखलंदाजी --
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लूलू लूला लचर लॉ, रहा लबलबा प्रांत
तिल तिल कर कातिल मरे, बचे नहीं दुर्दांत |
लूलू लूला लचर लॉ, रहा लबलबा प्रांत |
रहा लबलबा प्रांत, हमारे मारे पी एम् |
वोट बैंक पॉलिटिक्स, करे जय ललिता सी एम् |
ढोल-ढोल में पोल, हँसे आतंकी खिल खिल |
देख पोल आसन्न, हुवे खुश तीनों कातिल ||,
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आपकी रचनाएं पढ़कर तारीफ में शब्द भी छोटे लगते है
ReplyDeleteकविवर, बस माँ शारदे की कृपा यूँही आप पर बरसती रहे,
आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-02-2014) को " विदा कितने सांसद होंगे असल में" (चर्चा मंच-1532) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुमन जी की वाणी में हम भी शामिल :)
ReplyDeleteबहुत खूब !
सुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteसभी रचनाएँ एक दूसरे से बढ़कर.....समसामयिक रचनाएं आपकी खासियत हैं महोदय...
ReplyDeleteमनोरंजक और तीखे धारदार व्यंग.....बहुत बढ़िया ....