कुण्डलियाँ
(१)
दीखे अ'ग्रेसर खड़ा, छात्रा छात्र तमाम ।
करें एकश: अनुकरण, आवश्यक व्यायाम ।
आवश्यक व्यायाम, भंगिमा किन्तु अनोखी ।
कई डुबाएं नाम, हरकतें नइखे चोखी ।
वहीँ ईंट पर बाल, लगन से रविकर सीखे ।
ऊँची भरे उड़ान, सहज अनुकर्ता दीखे ॥
(२)
ऊँचा उड़ना चाहता, छू लेना आकास ।
चाहे तारे तोड़ना, पर साधन नहिं पास ।
पर साधन नहिं पास, सामने चहरदिवारी ।
किन्तु हौसला ख़ास, नित्य करता तैयारी ।
रख ईंटो पर पैर, ताक ब्रह्माण्ड समूचा ।
अंतरिक्ष की सैर, करे यह बालक-ऊँचा ॥
(3)
वारी जाऊँ पूत पर, उत्सुक तके परेड |
किन्तु कलेजा काटता, बढ़ बदहाली ब्लेड |
बढ़ बदहाली ब्लेड, अधूरी अर अभिलाषा |
खूब खुदाया खूह, खड़ा खाके गम प्यासा |
रविकर तनु अस्वस्थ, देख जन-गण लाचारी |
बँटे अमीर गरीब, बढ़े नित चहर-दिवारी ||
अर=हठ
खूह=कूप
नइखे = नहीं हैं
"लगे खाने-कमाने में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
माने शरमाने लगे, सिर्फ स्वार्थमय भोग |
शारीरिक सुख-साधते, जाने-माने लोग |
जाने-माने लोग, कराएं परहित धंधे |
उच्चकोटि के ढोंग, फँसाये कोटिक अंधे |
बन बैठे भगवान्, बनायें विविध बहाने |
तन मन धन का दान, करोड़ों लगे कमाने ||
सुन्दर कुण्डलियाँ
ReplyDelete,बेहतरीन प्रस्तुति...!लाजबाब
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
waah ji waah ... lajwaab hain sabhi ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर । स्वागत है बहुत दिनों के बाद पोस्ट दिखी अच्छा लगा । आशा है स्वस्थ होंगे ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुण्डलियाँ
ReplyDeletelatest post प्रिया का एहसास