(1)
दो सौ इक्यावन लगे, फोन बुकिंग आरम्भ।
दिखा करोड़ों का यहाँ, बेमतलब का दम्भ।
बेमतलब का दम्भ, दर्जनों बुक करवाये।
नोचे बिल्ली खम्भ, फोन आये ना आये।
मुफ्तखोर उस्ताद, दूर रहता है कोसों।
कौड़ी करे न खर्च, कहाँ इक्यावन दो सौ।।
(2)
धोखा खाने का मजा, तुम क्या जानो मित्र।
नहीं भरोसा तुम करो, लगता तभी विचित्र।
नहीं भरोसा तुम करो, लगता तभी विचित्र।
लगता तभी विचित्र, भरोसा करना सीखो।
बढे हर्ष उन्माद, ख़ुशी से उछलो चीखो।
हो जाए अतिरेक, होय सब चोखा चोखा।
रविकर खा के देख, मजा देता तब धोखा।।
वाह !
ReplyDelete