नोंक-झोंक-1 वो
पैर बाहर अब निकलने लग पड़े | खींच के चादर जरा लम्बी करो ||
आप
पैर अपने मोड़ कर रखो तनिक, दूसरी चादर मिले, धीरज धरो ||
वो
आपके कम्बल से आती है महक ओढ़ कर पीते हुए घी क्यूँ चुआये ||
आप
रोज तिल का ताड़ तुम बेशक करो, कान पर अब जूं हमारे न रेंगाये ||
(अपनी टांग उघारिये आपहिं मरिये लाज)
पर -नोंक झोंक परसनल कहाँ रही--
वो
अपनी गरज तो बावली, दूजा नहीं दिखाय | अस्सी रूपया रोज का, पानी रहे बहाय ||
आप
हो बड़की शौकीन तुम, मलमल लहँगा पाय | मैट्रिक्स पार्लर घूमती, कौआ रही उड़ाय ||
वो
सींग काटकर के सदा, बछड़ों में घुस जात | फ़ोकट में दिन-रात जो, झूठे कलम घिसात ||
बस-बस बस --- आप
जीभ को तालु से लगा, गया छोड़ मैदान || कम्प्यूटर पर बैठ के, साफ़ बचाई जान ||
आप
सब कुछ बाहर छोड के लौटा तेरे पास |
भूखा तेरे प्यार का, डाल जरा सी घास ||
वो
घंटों से तू था किधर, रहा था दाने डाल ||
नहीं फंसी चिड़िया तभी, शाकाहारी ख्याल ||
आप
सांप नहीं हम हैं प्रिये, खायें मात्र हवा ||
ऊंट को जब-तब चाहिए, दारु-भोज-दवा ||
वो
नीति-नियम से पक रहा, बासी न बच जाय |
हो राशन बर्बाद क्यूँ , काहे कुक्कुर खाय ||
आप
नित कोल्हू के बैल सा, खटता आठो याम |
कीचड़ में टट्टू फंसा, होवे काम तमाम ||
नाच नाचता मैं रहूँ , पल्ला पकड़ा तोर |
गाढ़े के साथी तुम्ही, भूख मिटा दो मोर ||
वो
एक आँख से रो रहे, दूजी हंसती जाय |
करवट बैठे ऊंट उस, जो पहाड़ बतलाय ||
बहुत अच्छा नोंक झोंका...सारे बहुत अच्छे
ReplyDeleteआपकी रचना पढने में मजा आया है, दिल खुश हुआ।
ReplyDeleteनीति नियम से पक रहा ,बासी न बच जाय ,
ReplyDeleteहो राशन बर्बाद क्यों ,क्क्क्हे कुक्कर खाय ।
दिनेश भाई इधर उधर भटक रहा था कुछ ताज़ा पढने को मिले ,ताज़ा माल यहीं मिलता है .आइन्दा ध्यान रखेंगे ।
ताज़ा जब मिलता रहे ,काहे बासी खाय,
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बढ़िया है !
ReplyDeleteनीति-नियम से पक रहा, बासी न बच जाय |
ReplyDeleteहो राशन बर्बाद क्यूँ , काहे कुक्कुर खाय ||
Kya Bat...Bahut Sunder
आप के कवीता बहुत आचा लगा
ReplyDeleteबढ़िया रही ये नॉक झोंक भी ..:)
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