स्वर्णयोनिः वृक्षः शमी
राजीव कुमार झा
रोचक है यह तरु शमी, यहाँ अग्नि का वास |
यज्ञ धर्म इतिहास में, रखे जगह यह ख़ास ||
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दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द-"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34
दोहा
दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||
कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||
अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||
*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||
दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला
षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली
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भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत-
भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |
इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||
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अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग-
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
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बहुत सुंदर ! आ. रविकर जी.
ReplyDeleteआभार.
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteआ० बढ़िया प्रस्तुति , धन्यवाद
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ReplyDeleteकंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||
सुन्दर
वाह ... बेहतरीन
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