सच्चे शुभचिंतक रखें, तारागण सा तेज़।
अँधियारे में झट दिखें, रविकर इन्हें सहेज।।
शीशा सिसकारी भरे, पत्थर खाये भाव।
टकराना हितकर नहीं, बेहतर है अलगाव।।
खोज रहा बाहर मनुज, राहत चैन सुकून।
ताप दाब मधुमेह कफ़, अन्दर करते खून।।
ठोकर खा खा खुद उठा, रविकर बारम्बार।
लोग आज कहते दिखे, बड़ा तजुर्बेकार।।
गुमनामी में ही मिले, अब तो दिली सुकून।
शोहरत पा बेचैन है, रविकर अफलातून।।
सुखकर के पीछे पड़े, जो हितकर को भूल।
खुद को मिटते देखते, वो ही नामाकूल।। ।।
मानव के वश में नहीं, रंग-रूप-आकार।
पर अपने किरदार का, वो खुद जिम्मेदार।।
वाणी कार्य विचार को, दर किनार कर व्यक्ति।।
चेहरे से परिचय करे, हो अन्तत: विरक्ति।।
रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट समाज।
वैसे के वैसे मिले, थे जैसे अल्फ़ाज़।।
शक्ति समय पैसा नहीं, मिले कभी भी संग।
वृद्ध युवा बालक दिखे, क्रमश: इनसे तंग।।
रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट हजार।
वैसे के वैसे मिले, शब्द-अर्थ हर बार।।
जो गवाह संघर्ष का, मूल्य उसे ही ज्ञात।
प्राप्त सफलता को कहें, अन्य भाग्य की बात।।
चक्की चलती न्याय की, देती घुन भी पीस।
असहनीय होती रही, बुरे वक्त की टीस।
अतिशय ऊँचा लक्ष्य जब, डगर नहीं आसान।
किन्तु डगर तो डग तले, मत डगमगा जवान।।
रुपिया हीरा स्वर्ण से, कौन बने धनवान।
शुभ विचार सद्मित्र से, धनी बने इन्सान।।
रैन बसेरे में रुके, या कोठी का व्यक्ति।
सोना रहे खरीद वे, दिखी गजब आसक्ति।।
सोने का मृग माँगती, जब रविकर पति पास ।
फिर सोने के दुर्ग में, पति बिन कौन उदास।।
गुड्डी उड़ी गुमान में, माँझे को दुत्कार |
लिए लुटेरे लग्गियाँ, दिखे घूटते लार ||||
दुर्जन पे विश्वास से, आधा दुखे शरीर।
सज्जन पे शक ने दिया, पूरे तन की पीर।।