क्या तुम्हें चाहिए ?
Amrita Tanmay
मरती आरुषि महल में, काटी थी तलवार |
जिनसे मिलता प्यार था, करते वे ही वार |
करते वे ही वार, किसे तलवार चाहिए -
कितना चुके लताड़, इन्हें तो मार चाहिए |
करे धनुष टंकार, मुफ्त हो जाए धरती |
मरे नहीं कुविचार, दिखे नहिं आरुषि मरती ||
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साथ सुता के सो ले बाबा-
अंध-भक्ति श्रद्धा जब बाढ़ी ।
झोंके लोग कमाई गाढ़ी ।
पर डूबे सागर में *पाढ़ी ।
काली दाढ़ी उजली दाढ़ी -
विष जीवन में घोले बाबा । भोले बाबा भोले बाबा ॥
पढ़े लिखे लोगों की मर्जी ।
शायद हों बाबा के करजी ।
संत कृपा की खातिर अर्जी ।
ना जाने कैसी खुदगर्जी ।
साथ सुता के सो ले बाबा । भोले बाबा भोले बाबा ॥
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किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -
झूठी कहते ना थको, व्यर्थ बको अविराम ।
याद करो उस शाम को, जब थे लोग तमाम ।
जब थे लोग तमाम, वहाँ बक्कुर नहिं फूटा ।
फूटी किस्मत हाय, तभी दिल रविकर टूटा ।
रही मुहब्बत पाक, किन्तु मैं तुझ से रूठी ।
किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी ॥
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गई शक्ति-मिल दुष्ट क्लीव को -
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मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला-
जब रूपसि-रंगत नैन लखे तब रंग जमे मितवा मतवाला |
चढ़ जाय नशा उतरे न कभी अब भूल गया मनुवा मधुशाला
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला |
नवनीत चखी चुपचाप सखी फिर छोड़ गई वह सुन्दर बाला ||
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'