Sunday, 8 September 2013

कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले-




सेकुलरों का राजधर्म

कमल कुमार सिंह (नारद ) 



चोरों के सरदार पर, लगा बड़ा आरोप । 
आरोपी खुद हट रहा, क्वारा बबलू थोप  । 

क्वारा बबलू थोप, कोप क्यूँकर वह झेले । 
कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले । 

देता गेंद उछाल, कालिया किंवा लोके । 
अब तो मोहन मस्त,  साथ बैठा चोरों के । 

शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान -

सन्ता-बन्ता पर टिके, यदि जनता का ध्यान |
शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान |

पुन: जीत आसान, म्यान में रख तलवारें |
जान-बूझ कर जान, आम-जनता की मारें |

इक प्रकोष्ठ तैयार, ढूँढ़ता सकल अनन्ता |
मिला नया हथियार, और कुछ घेरें सन्ता || 


रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया -

बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल | 
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |

कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |

खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया || 





प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -

पर मेरी प्रस्तुति 

माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।

सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से । 
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से । 

देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता । 
प्रेम बुद्धि बल पाय,  मूर्ख रविकर क्यूँ माता  ??

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