सेकुलरों का राजधर्म
कमल कुमार सिंह (नारद )
चोरों के सरदार पर, लगा बड़ा आरोप ।
आरोपी खुद हट रहा, क्वारा बबलू थोप ।
क्वारा बबलू थोप, कोप क्यूँकर वह झेले ।
कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले ।
देता गेंद उछाल, कालिया किंवा लोके ।
अब तो मोहन मस्त, साथ बैठा चोरों के ।
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शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान -
सन्ता-बन्ता पर टिके, यदि जनता का ध्यान |
शठ-सत्ता की समझ ले, पुन: जीत आसान |
पुन: जीत आसान, म्यान में रख तलवारें |
जान-बूझ कर जान, आम-जनता की मारें |
इक प्रकोष्ठ तैयार, ढूँढ़ता सकल अनन्ता |
मिला नया हथियार, और कुछ घेरें सन्ता ||
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रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया -
बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल |
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |
कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |
खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया ||
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प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??
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बहुत सुंदर कुण्डलियाँ ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
बहुत सुंदर, आभार
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आभार
ReplyDeleteवाह जी वाह ... मस्त हैं सभी ...
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