"दर्पण काला-काला क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
प्रश्नों के उत्तर सरल, पर रखते नहिं याद |
स्वार्थ-सिद्ध के मामले, भोगवाद उन्माद |
भोगवाद उन्माद , नशे से बहके बहके |
लेते रहते स्वाद, अनैतिक चीजें गहके |
नीति नियम आदर्श, हवा के ताजे झोंके |
रविकर आये होश, लिखे उत्तर प्रश्नों के ||
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टीस
Asha Saxena
तन के जख्मों पे लगे, मरहम रोज सखेद |
मन के जख्मों को सगे, जाते किन्तु कुरेद |
जाते किन्तु कुरेद, भेद करते हैं भारी |
ऊपर ऊपर ठीक, किन्तु अन्दर चिंगारी |
होना क्या मुहताज, मोह अब छोडो मन के |
कर के मन मजबूत, खड़े हो जाओ तन के ||
डर या रोमांच
kavita verma
डर डर कर जीते रहे, रहे गहे सद्मार्ग |किन्तु आज रोमांच हित, जिए बड़ा सा वर्ग-
कल तक चाँद हो रहा था रात ही रात में दाग हो गया
Sushil Kumar Joshi
दागी अध्यादेश पर, तीन दिनों में खाज |
श्रेष्ठ मुखर-जी-वन सदा, धत मौनी युवराज |
धत मौनी युवराज, बड़े गुस्से में लालू |
मारक मिर्ची तेज, चाट ले किन्तु कचालू |
सुबह मचाये शोर, नहीं महतारी जागी |
शीघ्र बुला के प्रेस, गोलियां भर भर दागी ||
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तब दिग्विजय के मंद बुद्धि चेले ने आस्तीन चढ़ाके वह सब बोला जो मीडिया सेंटर में भारत के लोगों ने देखा। ये मदारी भोपाली अभी और भी करतब दिखलाएगा।
Virendra Kumar Sharma
प्रणव नाद सा मुखर जी, पाता है सम्मान |
मौन मृत्यु सा बेवजह, ले पल्ले अपमान | ले पल्ले अपमान , व्यर्थ मुट्ठियाँ भींचता | बेमकसद यह क्रोध, स्वयं की कब्र सींचता | नहिं *अधि ना आदेश, मात्र दिख रहा हादसा | रविकर हृदय पुकार, आज से प्रणव नाद सा || *प्रधान |
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे -रविकर
हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार। देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे । करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे। समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे । प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥ |
प्रतिउत्तर की टिप्पणी बहुत शानदार है रविकर जी |काश हम भी ऐसा लिख पाते |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार।
हद तो ये है हमारे ही कई ब्लागिया इस मंद बुद्धि में युवा तुर्क देख रहें हैं एंग्री में देख रहें हैं जबकी इनका मंचीय व्यवहार कभी भी सामान्य नहीं देखा गया है जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार इनके नेत्रित्व में अपने सीटें अखिलेश बरक्स राहुल मुकाबले में और भी कम कर बैठती है तब भी यह चुनाव बाद वही भाषण बाजू ऊपर चढ़ाके पढ़ते रहतें हैं -हम यूं ही आते रहेंगे यूं पी के खेत खलिहानों में चुनाव में हार जीत होती ही रहती है भाषण थोड़ी रोज़ बदला जाता है .
ReplyDelete"एंग्री मेन पढ़ें कृपया "
ReplyDeletesundar prastuti ..shamil karne ke liye abhar ..
ReplyDeletesundar links
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक्स .
ReplyDeleteनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
बहुत ही उम्दा ! आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी अद्यतन रचनाओं का जो सर्वथा प्रासंगिक बनी रहतीं हैं .
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