दंगो को प्रायोजित तौर पर भड़काया जाता है
बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट |
खर्च करोड़ों नोट, चोट पीड़ा पहुँचाये |
पीते जाते रक्त, माँस अपनों का खायें |
अग्गी करके धूर्त, दिखाते हैं चालाकी |
जाँय अंतत: हार, दिखी "पूरण" बेबाकी ||
बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट |
खर्च करोड़ों नोट, चोट पीड़ा पहुँचाये |
पीते जाते रक्त, माँस अपनों का खायें |
अग्गी करके धूर्त, दिखाते हैं चालाकी |
जाँय अंतत: हार, दिखी "पूरण" बेबाकी ||
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी-
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
*बेटी
|
हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित-
चिंतित मानस पटल है, विचलित होती बुद्धि |
प्रतिदिन पशुता बलवती, दुष्कर्मों में वृद्धि |
दुष्कर्मों में वृद्धि, कहाँ दुर्गा है सोई |
क्यूँ नहिं होती क्रुद्ध, जगाये उनको कोई |
कर दे माँ उपकार, दया कर दे माँ समुचित |
हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित ||
|
पापा मेरी भी शादी करवा दो ना
पूरे हों अरमान आपके, होना चाहो खेत |
लड्डू खा के हो गए, कितने मूर्ख अचेत |
कितने मूर्ख अचेत, निकलता तेल रेत में |
होंगी मटियामेट, ख्वाहिशें सेत-मेत में |
नहीं रहें अरमान, शौक ना रहें अधूरे |
शेष बचे दिन चार, राम जी कर दो पूरे ||
मचा रहे हल्ला सभी, कभी नहीं हों मौन |
मची हुई है होड़ नित, आगे निकले कौन |
आगे निकले कौन, लगाते कसके नारे |
काली पीली दाल, गलाके छौंक बघारें |
रचते नित षड्यंत्र, चलें तलवार तमंचा |
छौंक छौंक के दाल, हुआ अब काला चमचा ||
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -
|
विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |
करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |
रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |
|
ले पहले घर देख, ताकना फिर मस्जिद में-
फिर भी दिल्ली दूर है, नहीं राह आसान |
अज्ञानी खुद में रमे, परेशान विद्वान |
परेशान विद्वान, बड़े भी अपनी जिद में |
ले पहले घर देख, ताकना फिर मस्जिद में |
डंडे से ही खेल, नहीं पायेगा गिल्ली |
आस-पास बरसात, तरसती फिर भी दिल्ली ||
(आज के राजनैतिक माहौल पर)
नीले रंग में मुहावरे हैं-
ढले एक टकसाल के,
गिरते गए समान ।
पहला गिरके खनकता,
दूजे को नहिं भान-
थमो थमो दोनों थमो ।
झुके झुके लेते चुरा,
एम् बी ए अब ऊंट ।
छली बली बाजार है,
बिके कान का खूंट -
रमो रमो तुम भी रमो ॥
नागिन जब लेती लगा,
जबरदस्त दो पंख ।
सिक्युरिटी बिल में मिले
व्यर्थ बजाते शंख -
नमो नमो भज मन नमो ॥
गुजराती ताला भला,
लगा रहे किस ठौर ।
अरहर की टट्टी खड़ी -
किया कभी क्या गौर -
जमो जमो तुम ही जमो ॥
|
बेहतरीन प्रस्तुति !!
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteएक हफ़्ते से नजर नहीं आ रहे थे
ReplyDeleteलगता है कुण्डलिंया कहीं उगा रहे थे :)
बहुत ही गजब मेरी तो पूंगी बजा दी
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसादर आभार !!
मचा रहे हल्ला सभी, कभी नहीं हों मौन |
ReplyDeleteमची हुई है होड़ नित, आगे निकले कौन |
आगे निकले कौन, लगाते कसके नारे |
काली पीली दाल, गलाके छौंक बघारें |
रचते नित षड्यंत्र, चलें तलवार तमंचा |
छौंक छौंक के दाल, हुआ अब काला चमचा ||
बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट |
नगर मुज़फ्फर रोज़ कराते ये डंके की चोट
वोटों की गिनती करें मनमें इनके खोट।
नगर मुज़फ्फर रोज़ कराते ये डंके की चोट
वोटों की गिनती करें मनमें इनके खोट।
बढ़िया बढ़िया लिंक सजाये हैं रविकर ने
वाह!..वाह!...वाह प्रस्तुति!...हार्दिक बधाई ..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletedownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
Bahut sunder ravikar jee.
ReplyDelete