नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज -
कुण्डलियाँ-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
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बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने-
(1)
भटके राही लक्ष्य बिन, भट के झूठे युद्ध |
आशिक रूठे रूह से, देखूं ढोंग विशुद्ध |
देखूं ढोंग विशुद्ध, लगा सज्जन उकसाने |
बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने |
गा मनमाने गीत, दिखा के लटके-झटके |
मान बैठता जीत, जगत में क्यूँकर भटके ||
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रविकर देखे दृश्य, डोर जीवन की ढीली-"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 30
कुण्डलियाँ
ढीली ढाली गुर्रियाँ, पंचेन्द्रियाँ समेत ।
कर्म-चर्म पर झुर्रियां, परिवर्तक संकेत ।
परिवर्तक संकेत, ज़रा-वय का परिवर्तन ।
हो जाऊं ना खेत, पौध हित कर लूँ चिंतन ।
बन जाए वटवृक्ष, अभी तो मिट्टी गीली ।
रविकर देखे दृश्य, डोर जीवन की ढीली ।
दोहे
दो बित्ते दो सेर की, देह सींच दे वक्त ।
चार हाथ दो मन मगर , होता गया अशक्त ॥
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सजाये मौत पहले बहस मौत के बाद !
Sushil Kumar Joshi
नारि-सुरक्षा पर खड़े, यक्ष प्रश्न नहिं स्वच्छ |
सजा मीडिया कक्ष पर, मचता रहा अकच्छ |
मचता रहा अकच्छ, बचा नाबालिग मुजरिम |
लचर व्यवस्था नीति, सजा की गति भी मद्धिम |
आजादी की चाह, राह पर कड़ी परीक्षा |
कर लें स्वयं सलाह, तभी हो नारि-सुरक्षा ||
रविकर देखे चाँद, कल्पना करे व्यवस्थित
व्यथित पथिक बरबस चले, लगे खोजने चैन |
मृग मरीच से अलहदा, मूँदे दोनों नैन |
मूँदे दोनों नैन, वैन वैरी हो जाते |
आती ज्यों ज्यों रैन, रोज त्यों त्यों उकताते |
रविकर देखे चाँद, कल्पना करे व्यवस्थित |
मुखड़े पर मुस्कान, पथिक हो गया अव्यथित ||
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बहुत सुंदर कुण्डलियाँ ! आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ! आभार
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
सुंदर लिंक्स के साथ बेहतरीन कुंडलियाँ |
ReplyDeleteलेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
ReplyDeleteइक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
खुद अपनी ही कोख रोज़ खाती है नारी
नारी परे निरंतर नारी पर हैई भारी .