मन की खिड़की पर जमी, दर्द-गर्द की पर्त |
अभिलाषाएं थोपती, अजब गजब सी शर्त ||
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पौण्ड्रक(१)कपट-तापस
Devdutta Prasoon
लाई कन्या साथ में, पुत्र कहाँ दी छोड़ |
कन्या को भी छोडती, पकडे गुरु के गोड़ |
पकडे गुरु के गोड़, गुरू घंटाल हो गया |
रखा कमाय करोड़, अनैतिक बीज बो गया-
हल्ला गुल्ला व्यर्थ, व्यर्थ करती उबकाई |
मातु पिता निश्चिन्त, गुरू कर गया खलाई ||
"दोहे-खुली ढोल की पोल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
नाजुक अंगों को छुवे, करे वासना शान्त |
बने कान्त एकांत में, होय क्वारपन क्लांत |
होय क्वारपन क्लांत, बुद्धि से संत अपाहिज |
बढे दरिन्दे घोर, हुआ अब भारत आजिज |
बड़ी सजा की मांग, सुरक्षा से है तालुक |
मात पिता जा जाग, परिस्थिति बेहद नाजुक |
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मीडिया का अतिरेकी रवैया अपनाना क्या सही है !
पूरण खण्डेलवाल
रेकी रेका रोचता, इसे पसन्द बवाल | फैलाए उत्तेजना, और कमाए माल | और कमाए माल, खबर खरभर कर देता | करता कभी कमाल, कदाचित पैसे लेता | दिखा रहा प्रत्यक्ष, करे जैसे यह नेकी | छुपा जाय पर सत्य, मीडिया यह अतिरेकी ||
रेका=संदेह / शंका
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छक्का पंजा भूलता, जाएँ छक्के छूट |
छंद-मन्त्र छलछंद जब, कूट-कर्म से लूट |
कूट-कर्म से लूट, दुष्ट का फूटे भंडा |
पाये डंडा दण्ड, बदन हो जाये कंडा |
रविकर घटे प्रताप, कीर्ति को लगता धक्का |
गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का ||
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सतीश सक्सेना मेरे गीत !
चंचा हिलता खेत में, रहे चिरैया दूर | बिछे जाल में पर फँसे, कुछ तो गलत जरूर | कुछ तो गलत जरूर, बताओ क्या मज़बूरी | पग पग पलते क्रूर, नहीं क्यूँ उनको घूरी | कर दे काया सुर्ख, शिकारी चला तमंचा- दल का मुखिया मूर्ख, दुष्ट रविकर नहिं चंचा || चंचा=खेत में लगा पुतला |
आपकी त्वरित टिप्पणियाँ रचना को सार्थकता प्रदान करती हैं ।
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteहल्ला गुल्ला व्यर्थ, व्यर्थ करती उबकाई |
ReplyDeleteमातु पिता निश्चिन्त, गुरू कर गया खलाई ||
बहुत बारीक व्यंग्य विडंबन है .