तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!
पूरण खण्डेलवाल
इनके तुष्टिकरण से, पक्की क्रिस्टी जीत |
उनके रुष्टीकरण से, फिर क्या डरना मीत |
फिर क्या डरना मीत, रीत यह बहुत पुरानी |
करता रहा अतीत, यही कर नाना नानी |
किये आज तक राज, किन्तु अब माथा ठनके |
खतरे में अस्तित्व, राज में रविकर इनके ||
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सेकुलरों का राजधर्म
कमल कुमार सिंह (नारद )
चोरों के सरदार पर, लगा बड़ा आरोप ।
आरोपी खुद हट रहा, क्वारा बबलू थोप ।
क्वारा बबलू थोप, कोप क्यूँकर वह झेले ।
कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले ।
देता गेंद उछाल, कालिया किंवा लोके ।
अब तो मोहन मस्त, साथ बैठा चोरों के ।
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प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |
ReplyDeleteमैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteसादर आभार !!
सटीक सुंदर कुण्डलियाँ,
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
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