क्षिति को शिला जीत उकसाए । कामातुर अँधा हो जाए ।
क्षिति जल पावक नभ हवा, घटिया कच्चा माल ।
निर्माना पारम्परिक, दिया शोध बिन ढाल ।
दिया शोध बिन ढाल, प्रदूषित-जल, छल-"काया" ।
रविकर पावक बाल, दंभ ने गाल बजाया ।
हवा होय अनुरक्ति, गगन पर थूके हर पल ।
निर्माता आलस्य, भस्म बन जाए "क्षिति" जल ॥
सवैया छंद
निरमान करे जल से क्षिति सान समीर अकाश सुखावत है |
पर पुष्ट नहीं हुइ पावत जू तब पावक पिंड पकावत है |
जब काम बढे प्रभु नाम बढे, तब ठेकप काम करावत है |
परदूषित पंचक तत्व मिले, बन मानव दानव आवत है ||
चौपाई
क्षिति जल पावक गगन समीरा
घटिया दूषित जमा जखीरा ।
छली बली है खनन माफिया ।
आम हुई है रपट खूफिया ॥
निर्माता अब देता ठेके ।
बना बना के जस तस फेंके ॥
आलोचना सदैव अखरती ।
निंदा आग बबूला करती ॥
क्षिति को शिला जीत उकसाए ।
कामातुर अँधा हो जाए ।
आसमान पर थूका करता ।
मानव बरबस पानी भरता ।
नीति-नियम का उल्लंघन कर ।
करता जलसे मानव अक्सर ॥
हवा हवाई किले बनाता ।
किन्तु नहीं चिंतित निर्माता ॥
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मिटता क्यूँ अस्तित्व, पड़े नहिं रविकर पल्ले -
पल्ले चौखट चौकियाँ, पशोपेश में देश |
जला अन्तत: पूर्णत: वृक्ष हुआ नि:शेष |
वृक्ष हुआ नि:शेष, बड़े फल-फूल खिलाये |
दे आराम विशेष, जीव जो नीचे आये |
खेलकूद त्यौहार, शादियाँ इसके तल्ले |
मिटता क्यूँ अस्तित्व, पड़े नहिं रविकर पल्ले ||
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रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी-
निर्माता के प्रति दिखे, अब निर्मम व्यवहार |
हृष्ट-पुष्ट होकर बढ़े, रचना उसे नकार |
रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी |
पाय ममत्व-दुलार, करे उसकी अनदेखी |
मद में मानव चूर, आपदा पर हकलाता |
हो जाता मजबूर, याद आये निर्माता ||
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हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित-
चिंतित मानस पटल है, विचलित होती बुद्धि |
प्रतिदिन पशुता बलवती, दुष्कर्मों में वृद्धि |
दुष्कर्मों में वृद्धि, कहाँ दुर्गा है सोई |
क्यूँ नहिं होती क्रुद्ध, जगाये उनको कोई |
कर दे माँ उपकार, दया कर दे माँ समुचित |
हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित ||
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तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!
पूरण खण्डेलवाल
इनके तुष्टिकरण से, पक्की क्रिस्टी जीत |
उनके रुष्टीकरण से, फिर क्या डरना मीत |
फिर क्या डरना मीत, रीत यह बहुत पुरानी |
करता रहा अतीत, यही कर नाना नानी |
किये आज तक राज, किन्तु अब माथा ठनके |
खतरे में अस्तित्व, राज में रविकर इनके ||
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सेकुलरों का राजधर्म
कमल कुमार सिंह (नारद )
चोरों के सरदार पर, लगा बड़ा आरोप ।
आरोपी खुद हट रहा, क्वारा बबलू थोप ।
क्वारा बबलू थोप, कोप क्यूँकर वह झेले ।
कब तक आखिर बैठ, गोद में माँ की खेले ।
देता गेंद उछाल, कालिया किंवा लोके ।
अब तो मोहन मस्त, साथ बैठा चोरों के ।
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
ReplyDeleteनहा खून से हर हर गंगे |
बहा खून जाते हर दंगे |
अपनी अपनी गाय लफंगे
अपनों पर आघात करें |
बोलो किसकी बात करें