शिक्षक दिवस के बहाने ज़रा विचार तो कीजिये !!
पूरण खण्डेलवाल
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
मिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट बाल ।
गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी ।
नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी ।
बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता ।
भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥
|
आश्रम हित आ श्रम करें, कर ले रविकर धर्म-
आश्रम हित आ श्रम करें, कर ले रविकर धर्म |
जब जमीर जग जाय तो, छोड़ अनीति कुकर्म |
छोड़ अनीति कुकर्म, नर्म व्यवहार करेंगे |
देंगे प्रवचन मस्त, भक्त की पीर हरेंगे |
किन्तु मढ़ैया एक, दिखाने खातिर आक्रम |
बनवा दूँगा दूर, सदाचारी जो आश्रम ||
|
हिन्दी सिनेमा में अध्यापक के बदलते प्रतिमान
Ankur Jain
मिलते गुरु कौशिक सरिस, बनते "लक्ष्मण" राम ।
रावण-वध सम्भव तभी, खुशियाँ मिलें तमाम ॥
|
|
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया -
बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल |
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |
कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |
खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया ||
Sushil Kumar Joshi
मिला ज्ञान विज्ञान है, रविकर करे प्रणाम || |
शिक्षक दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसादर आभार !!
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार !
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteNC
ReplyDeleteगुरुवर करूँ प्रणाम मैं, रविकर मेरो नाम |
ReplyDeleteपाया अक्षर ज्ञान है, पाया ज्ञान तमाम |
पाया ज्ञान तमाम, निपट अज्ञानी लेकिन |
बहियाँ मेरी थाम, अनाड़ी हूँ तेरे बिन |
सतत मिले आशीष, पुन: आया हूँ दरपर |
करिए शुभ कल्याण, शिष्य सच्चा हूँ गुरुवर -
रविकर जैसा शिष्य हो तुलसी जैसा दास ,
....................................................
गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
ReplyDeleteमिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट बाल ।
सुन्दर .
बहुत सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteप्रथमप्रयास.कॉम-