माहिरों की राय : आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को प्राप्त होना आखिर क्यों ?
Virendra Kumar Sharma
गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द | गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द | पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता | करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता | बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी | होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||
*छुपा कर रखने में सक्षम
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लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई-
खोजा-खाजी खुन्नसी, खड़ी खुद-ब-खुद खाट |
रेशम के पैबंद से, बहुत सुधारा टाट |
बहुत सुधारा टाट, ठाठ से करे कमाई |
लेकिन बंद कपाट, दनुजता बाहर आई |
कर के नोच-खसोट, बने जब खुद से काजी |
सम्मुख आये खोट, शुरू फिर खोजा-खाजी ||
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देवेन्द्र पाण्डेय
केले सा जीवन जियो, मत बन मियां बबूल |
सामाजिक प्रतिबंध कुल, दिल से करो क़ुबूल |
दिल से करो क़ुबूल, अन्यथा खाओ सोटा |
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा |
दफ्तर कॉलेज हाट, चौक घर मेले ठेले |
रहो सदा चैतन्य, घूम मत कहीं अकेले |
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हथेली में तिनका छूटने का अहसास
समय की मृत्यु
संतरी, पीले, भूरे, लाल रंग से सजा क्षितिज |
यादें सुखद अतीत की, उज्जवल दिखे भविष्य |
वर्त्तमान की क्या कहें, भटके चंचल *ऋष्य |
भटके चंचल *ऋष्य, दृश्य दिखता है मारक |
थामे विशिख कराल, खड़ा सम्मुख संहारक |
यह रहस्य है गूढ़, तवज्जो इनपर ना दे |
वर्त्तमान को बूझ, याद कर कर के यादें-
*विशेष मृग
अच्छा है यह फैसला, टाला सदन त्रिशंकु | आप छोड़ते आप को, पैर पड़े नहीं पंकु | पैर पड़े नहीं पंकु, हाथ का साथ निभाया | दो बैलों का जोड़, लौट के घर को आया | टाल खरीद फरोख्त, करो दिल्ली की रच्छा | पाये बहुमत पूर्ण, यही तो सबसे अच्छा || |
और ये हो गयी पाँच सौंवी बकवास
सुशील कुमार जोशी
वासी मिले पहाड़ के, नामी डाक्टर जान |
बीमारी हमको बड़ी, झट भूलूं पहचान |
झट भूलूं पहचान, बड़ा दौड़ाया घोड़ा |
गया सूर्य इत डूब, किन्तु पहुंचा अल्मोड़ा |
इत बोलूं मैं मर्ज, उधर रविकर इक राशी |
लम्बी कविता दर्ज, इकठ्ठा दो बकवासी ||
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करते उंगली लिफ्ट में, गिरती लिफ्ट धड़ाम |
ऊपर तो जा ना सके, रहा तड़पता काम |
रहा तड़पता काम, नाम की लिफ्ट कहाये |
गिर गिर के इन्सान, कमाई सकल गंवाए |
नीचे ऊपर जाय, रहे उच्छवासें भरते |
पर पाये ना चैन, नैन दो चुगली करते ||
कार्टून :-एक तहलके के सूर्यास्त का स्टिंग ऑपरेशनहलके में मत लीजिये, हलका नहीं हमार | हलका-इन्स्पेक्टर कहे, फोटो रखे उतार | फोटो रखे उतार, नहीं दाढ़ी में तिनका | तिनका बेड़ापार, खींच ले फोटो जिनका | है यह बन्दा तेज, हाथ रह जाता मलके | नहीं कैमरा साथ, अन्यथा मचे तहलके || |
(हल्का-फुल्का)
भैया की खो ही गईं, रंगीनियां तमाम
कपडा झक्क सफ़ेद हैं, लेकिन मुखड़ा श्याम |
लेकिन मुखड़ा श्याम , नहीं ना ढूंढे राधा |
काम काम पर काम, निशाना किसपर साधा |
अब कवि की नहिं खैर, बचो अखबार लिखैया |
कर नागिन से बैर, कोबरा डरता भैया -
वाह रविकर बड़भैया !
ReplyDeleteआभार कविराज।
ReplyDeleteभैया की खो ही गईं, रंगीनियां तमाम
ReplyDeleteकपडा झक्क सफ़ेद हैं, लेकिन मुखड़ा श्याम |
लेकिन मुखड़ा श्याम , नहीं ना ढूंढे राधा |
काम काम पर काम, निशाना किसपर साधा |
अब कवि की नहिं खैर, बचो अखबार लिखैया |
कर नागिन से बैर, कोबरा डरता भैया -
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
और ये हो गयी पाँच सौंवी बकवास को स्थान दिया आभार सुंदर चर्चा सुंदर टिप्प्णियों के साथ !
ReplyDeleteधन्यवाद एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (02-112-2013) को "कुछ तो मजबूरी होगी" (चर्चा मंचःअंक-1449)
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया लिंक ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार !
ReplyDeleteयदि आप अपने ब्लॉग और वेबसाइट से पैसा कमाना चाहते हें तो इसे देखें
ReplyDeletehttp://chirkutpapu.blogspot.com/2013/12/4-cpm-advertising-programs-to-make.html