Thursday, 5 December 2013

वर्षगाँठ चालीसवीं, रचता रविकर छंद-


१६ दिसम्‍बर क्रान्ति

Vikesh Badola 

कौंधे तीखे प्रश्न क्यूँ, क्यूँ कहते हो व्यर्थ |
जीवन के अपने रहे, सदा रहेंगे अर्थ |

सदा रहेंगे अर्थ, रहेगी मनुज मान्यता |
बने अन्यथा देव, यही है मित्र सत्यता |

सदाचार है शेष, अन्यथा गिरते औन्धे |
वह छब्बिस की रात, आज भी अक्सर कौंधे ||




 बहुत बहुत शुभकामना, रहें सदा सानन्द |
वर्षगाँठ चालीसवीं, रचता रविकर छंद |

रचता रविकर छंद, शिल्प निर्दोष हमेशा |
भरे कथ्य सद्भाव, कटे अवसाद कलेशा |

स्वस्थ रहे मन-देह, परस्पर हाथ-थामना |
पुत्र पौत्र परिवार, बहुत बहुत शुभकामना ||

लिव-इन रिलेशन ले बना, मना रे-मना मौज |
लड्डू की अब फ़िक्र क्या, खा बादामी *लौज |

खा बादामी लौज, तरुण धोखा मत खाना |
रविकर कहता नौज, नहीं मुँह कभी फुलाना |

बने रेप का केस, अगर आपस में टेंशन |
देखे भारत देश, चट-पटा लिव-इन रिलेशन ||

लौज =मिठाई 
 नौज=ईश्वर न करे 



सलाम नेल्सन मंडेला

Ish Mishra 

डेला गोरों के बंधा, बड़ा मरकहा जीव । 
कालों को मारा किया, दुःख दुर्दशा अतीव । 

दुःख दुर्दशा अतीव, नींव के अनगढ़ पत्थर ।
चोट खाय वे मनुज, बैठ जाते थे थककर ।

दिला दिया सम्मान, हिलाया देश अकेला । 
आया गाँधी एक, जियो नेल्सन मंडेला ॥

दिल्लीवाले बह गए, सुनकर आप अलाप |
झारखण्ड देता बना, आज आप से आप |

आज आप से आप, दिखे कीचड़ ही कीचड़ |
लटके-झटके व्यर्थ, चतुर्दिश कामी लीचड़ |

अब सरकार त्रिशंकु, कहाँ डंडा कित गिल्ली |
पाँच साल में देख,  चार-छह सी एम् दिल्ली ||

"दोहे-लोकतन्त्र में वोट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')


अपने आका के लिए, भेदे लक्ष्य अचूक |
धाँय धाँय धांधल-धड़ा, दाग रहा बन्दूक |

दाग रहा बन्दूक, मार जनगण को जाए |
देता बस्ती फूँक, और सरकार बनाये |

मचती लूट खसोट, मिटाते रविकर सपने |
गोरे गए स्वदेश, अगोरे काले अपने ||  

5 comments:

  1. आदरणीय रविकर जी आपका आभारी हूँ।

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  2. अरे वाह।
    दोहों को भी टिपिया दिया आपने तो।

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  3. बस पीटें नहीं :)
    बहुत सुंदर !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (07-12-2013) को "याद आती है माँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1454 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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