१६ दिसम्बर क्रान्ति
Vikesh Badola
कौंधे तीखे प्रश्न क्यूँ, क्यूँ कहते हो व्यर्थ |
जीवन के अपने रहे, सदा रहेंगे अर्थ |
सदा रहेंगे अर्थ, रहेगी मनुज मान्यता |
बने अन्यथा देव, यही है मित्र सत्यता |
सदाचार है शेष, अन्यथा गिरते औन्धे |
वह छब्बिस की रात, आज भी अक्सर कौंधे ||
बहुत बहुत शुभकामना, रहें सदा सानन्द |
वर्षगाँठ चालीसवीं, रचता रविकर छंद |
रचता रविकर छंद, शिल्प निर्दोष हमेशा |
भरे कथ्य सद्भाव, कटे अवसाद कलेशा |
स्वस्थ रहे मन-देह, परस्पर हाथ-थामना |
पुत्र पौत्र परिवार, बहुत बहुत शुभकामना ||
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लिव-इन रिलेशन ले बना, मना रे-मना मौज |
लड्डू की अब फ़िक्र क्या, खा बादामी *लौज |
खा बादामी लौज, तरुण धोखा मत खाना |
रविकर कहता नौज, नहीं मुँह कभी फुलाना |
बने रेप का केस, अगर आपस में टेंशन |
देखे भारत देश, चट-पटा लिव-इन रिलेशन ||
लौज =मिठाई
नौज=ईश्वर न करे
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कालों को मारा किया, दुःख दुर्दशा अतीव ।
दुःख दुर्दशा अतीव, नींव के अनगढ़ पत्थर ।
चोट खाय वे मनुज, बैठ जाते थे थककर ।
दिला दिया सम्मान, हिलाया देश अकेला ।
आया गाँधी एक, जियो नेल्सन मंडेला ॥
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दिल्लीवाले बह गए, सुनकर आप अलाप |
झारखण्ड देता बना, आज आप से आप |
आज आप से आप, दिखे कीचड़ ही कीचड़ |
लटके-झटके व्यर्थ, चतुर्दिश कामी लीचड़ |
अब सरकार त्रिशंकु, कहाँ डंडा कित गिल्ली |
पाँच साल में देख, चार-छह सी एम् दिल्ली ||
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"दोहे-लोकतन्त्र में वोट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')अपने आका के लिए, भेदे लक्ष्य अचूक | धाँय धाँय धांधल-धड़ा, दाग रहा बन्दूक | दाग रहा बन्दूक, मार जनगण को जाए | देता बस्ती फूँक, और सरकार बनाये | मचती लूट खसोट, मिटाते रविकर सपने | गोरे गए स्वदेश, अगोरे काले अपने || |
आदरणीय रविकर जी आपका आभारी हूँ।
ReplyDeleteअरे वाह।
ReplyDeleteदोहों को भी टिपिया दिया आपने तो।
बस पीटें नहीं :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (07-12-2013) को "याद आती है माँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1454 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं