जाग मुसाफिर जाग !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ठेला-ठाली आपकी , भली लगी श्रीमान | बहुत दिनों से ढूँढता, किस कारण व्यवधान | किस कारण व्यवधान , इलेक्शन फिर से आया | मत चुको चौहान, इन्होने बहुत सताया | बदलो यह सरकार, ख़तम कर विकट झमेला |
असहनीय यह बाँस, हमेशा रविकर ठेला ||
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लिव इन रिलेशनशिप को कानूनन रोका जाये ..
Shalini Kaushik
चढ़े देह पर *देहला, देहात्मक सिद्धांत |
लेशन लिव-इन-रिलेशनी, जीने के उपरान्त |
जीने के उपरान्त, सोच क्या खोया पाया |
हरदम रहे अशांत, स्वार्थ सुख आगे आया |
त्याग समर्पण छोड़, ओढ़ ले चादर रविकर |
है समाज का कोढ़, वासना चढ़े देह पर ||
*मद्य
कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये-
पाये कटक कमान तो, ताने विशिख कराल |
भूले लेवी अपहरण, भूले नक्सल चाल |
भूले नक्सल चाल, बंद हो जाये हमला |
फिर गांधी मैदान, बनेगा नहीं कर्बला |
कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये |
नक्सल रहा डकार, नहीं जनता जी पाये ||
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मुर्गा कुकडूं-कूँ करे, फिर दिनभर बेचैन |
लगे अड़ंगे व्याह में, तेल-मैन की रैन |
तेल-मैन की रैन, नहीं हल्दी आ पाई |
बीते कई मुहूर्त, टले हर बार सगाई |
इक दिन मौका पाय, पकड़ता उनका गुर्गा |
हल्दी नमक लगाय, तेल में तलती मुर्गा ||
तेल-मैन = विवाह के एक दिन पहले के कार्यक्रम
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जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है
सुशील कुमार जोशी
बाज बाज आता नहीं, भरता रहे उड़ान |
नीचे कुछ भाता नहीं, खुद पर बड़ा गुमान |
खुद पर बड़ा गुमान, कहाँ उल्लू में दमखम |
लेता आँखें मीच, धूप की ऐसी चमचम |
पर गुरुत्व सिद्धांत, इक दूजे को खींचे |
रख धरती पर पैर, लौट आ प्यारे नीचे ||
वो दूल्हा....
कालीपद प्रसाद
बड़ी दुकानें हैं सजी, जा सीधे बाजार | ढूँढे दूल्हा ना मिले, जाकर वहाँ निहार | जाकर वहाँ निहार, हार इक मस्त खरीदें | लख लखपति पति एक, जाग जाती उम्मीदें | किन्तु भरी नहिं मांग, मांग के अपने माने | जाय हार भी हार, हार से बड़ी दुकानें || |
सीढ़ी कोने में खड़ी, इधर बड़ी सी लिफ्ट |
लिफ्ट लिफ्ट देती नहीं, सीढ़ी की स्क्रिप्ट |
सीढ़ी की स्क्रिप्ट, कमर में हाथ डालते |
चूमाचाटी होय, तनिक एहसास पालते |
किन्तु लगे ना दोष, तरुण की कैसी पीढ़ी |
फँसता तेज अधेड़, छोड़ देता ज्यों सीढ़ी ||
बा -मुश्किल ही पहुँच पातीं हैं औरतें काम शिखर पर (दूसरी किश्त )
Virendra Kumar Sharma
श्वासों से सरगम बजे, गम से तो उच्छ्वास | क्या है कामानन्द का, सजना सजनी पास | सजना सजनी पास, बराबर चूमाचाटी | पारस्परिक विलास, मार नहिं व्यर्थ गुलाटी | है मैराथन रेस, आतंरिक शक्ति हुमा सो |
बाकी है कुछ काम, ठहर जा लम्बी श्वासों ||
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चढ़े देह पर *देहला, देहात्मक सिद्धांत |
ReplyDeleteलेशन लिव-इन-रिलेशनी, जीने के उपरान्त |
जीने के उपरान्त, सोच क्या खोया पाया |
हरदम रहे अशांत, स्वार्थ सुख आगे आया |
त्याग समर्पण छोड़, ओढ़ ले चादर रविकर |
है समाज का कोढ़, वासना चढ़े देह पर ||
बहुत खूब प्रस्तुति सशक्त भावों की उन्मुक्त उड़ान .
सुंदर चर्चा ! उल्लूक की "जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है"
ReplyDeleteको शामिल करने और सुंदर टिप्पणी के लिये आभार !