बावन पत्ते कुछ इधर कुछ उधर हंस रहा है बस एक जोकर
सुशील कुमार जोशी
पंजे घी में लो डुबा, छक्के-अट्ठे साथ |
छोड़ें रविकर बादशा, जब बेगम का हाथ | जब बेगम का हाथ, गुलामों ख़्वाब सजाओ | सैकिल इक्का साज, दुक्कियाँ सैर कराओ | खुश हैं हाथी-दांत, लगाते चौका गंजे | सत्ता दे दहलाय, डुबा नहला के पंजे || |
आपेक्षा अब आप, करो दिल्ली की पूरी-
नकारात्मक गुण छिपा, ले ईमान की आड़ ।
व्यवहारिकता की कमी, दुविधा रही बिगाड़ ।
दुविधा रही बिगाड़, तर्क-अभिव्यक्ति जरुरी ।
आपेक्षा अब आप, करो दिल्ली की पूरी ।
पानी बिजली सहित, प्रशासन स्वच्छ सकारा ।
वायदे करिये पूर, अन्यथा कहूं नकारा ॥
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लेना देना साथ भी, लागे भ्रष्टाचार-
अड़ियल टट्टू आपका, अड़ा-खड़ा मझधार |
लेना देना साथ भी, लागे भ्रष्टाचार |
लागे भ्रष्टाचार, दीखने लगा *अड़ाड़ा |
भाड़ा पूरा पाय, पढ़ाये आज पहाड़ा |
ताके पूरा देश, हमेशा बेहतर दढ़ियल |
टस से मस ना होय, महत्वाकांक्षी अड़ियल ||
*आडम्बर, ढोंग
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अपनापन नहिं आपसे, अपने से अपड़ाव | आप आप की है पड़ी, जाने कहाँ जुड़ाव | जाने कहाँ जुड़ाव, समर्थन जिनका पाया | दिखा उन्हीं को दाँव, नहीं सरकार बनाया | रविकर सपना टूट, शुरू है सतत कलपना | लगे स्वार्थी आप, तोड़ते वायदा अपना ||
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करें इशारा आप, बैठ रेडी मधु-कोड़ाकोड़ा की दरकार थी, दे कोड़ा फटकार | आये सब औकात में, झाड़ू का आभार | झाड़ू का आभार, कमल नैनों में गरदा | पंजे की दरकार, हटा दे पीला परदा | नहीं बने सरकार, भानुमति कुनबा जोड़ा | करें इशारा आप, बैठ रेडी मधु-कोड़ा || |
great presentation
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..आभार..
ReplyDeleteभैया अपेक्षा कर लो पूरी देश की दिल्ली की बढ़िया रचना
ReplyDeleteनकारात्मक गुण छिपा, ले ईमान की आड़ ।
व्यवहारिकता की कमी, दुविधा रही बिगाड़ ।