Tuesday, 19 January 2016

सत्ता की दुत्कार, इसी से सज्जन सहते -

कुण्डलियाँ 
सज्जन रहते व्यस्त खुद, लंद-फंद से दूर |
सत्ता को क्या फ़ायदा, बनते बोझ जरूर |
बनते बोझ जरूर, काम के चोर-उचक्के |
लोकतंत्र मगरूर, कार्यकर्ता ये पक्के |
सत्ता की दुत्कार, इसी से सज्जन सहते |
दुर्जन सत्ता पास, दूर अति सज्जन रहते ||

दोहा 
बहुत व्यस्त हूँ आजकल, कहने का क्या अर्थ |
अस्त-व्यस्त तुम वस्तुत:, समय-प्रबंधन व्यर्थ ||

No comments:

Post a Comment