फेसबुक पर मेरी टिप्पणियां
(१)
(१)
कटवाने से क्या घटे, दुनिया में जेहाद।
भर दुनिया में हैं डटे, बगदादी उस्ताद।
बगदादी उस्ताद, वहाँ दाढ़ी कटवाई।
गला काट आजाद, यहाँ कर देते भाई।
अस्मत लेते लूट, और फिर देते बटवा।
मिली धर्म से छूट, मौज फिर करते कटवा।
(२)
जीते जी तो ना मिली, किन्तु मिले अब ख्याति।
ख़ुशी ख़ुशी खुदकुसी कर, किन्तु बता के जाति।
किंतु बता के जाति, हमे आंदोलन करना।
पर पूछे याकूब, दिया फाँसी पर धरना।
किन्तु गया क्यूँ झूल, लगा के स्वयं पलीते।
लगते झूठ उसूल, नहीं तो अब भी जीते।।
(३)
फाँसी पर धरना दिया, लिया बीफ भी खाय।
रही बात याकूब की, बेचारा पछताय।
बेचारा पछताय, पूछ लो आज उसी से।
वह विरोध था झूठ, तभी तो मरा ख़ुशी से।
रविकर कहे खखार, जिसे आती है खांसी।
रखे गले का ख्याल, लगाये कैसे फाँसी।।
(४)
दरी दादरी हैदरा, सदा रहे आबाद।
पानी डाले आप तो, नारद डाले खाद।
नारद डाले खाद, उन्हें खुब दाद दीजिये।
कर के सब बर्बाद, बाद में हाथ मीजिये ।
मुल्ला काजी मस्त, दिखे मदमस्त पादरी।
सबकी चले दुकान, चलो ले दरी दादरी।।
लाम बंद हैं सिरफिरे, फैलाएं आतंक।
माँ-बहनों के बदन पर, स्वयं मारते डंक।
स्वयं मारते डंक, मचाएं कत्लो-गारद।
मुल्ला पंडित मौन, मौन नेता गण नारद।
आएंगे बरबंड, तनिक रफ़्तार मंद है |
मियां म्यान दरम्यान, वहीँ इस्लाम बंद है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-01-2016) को "विषाद की छाया में" (चर्चा अंक-2230) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'