Wednesday, 27 January 2016
अजब गजब विश्वास, बदल लेता झट खेमें
इक झटके में टूटता, जमा हुआ विश्वास।
जिसे बनाने में हमें, लगे अनगिनत मास।
लगे अनगिनत मास, बड़ी मुश्किल से साधा।
अब तक रखा सँभाल, दूर करके हर बाधा।
अजब गजब विश्वास, बदल लेता झट खेमें।
रविकर हुआ उदास, तोड़ता इक झटके में ||
1 comment:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
28 January 2016 at 04:43
आज के परिवेश में सटीक कुण्डलिया।
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आज के परिवेश में सटीक कुण्डलिया।
ReplyDelete