Sunday 24 January 2016
ऊपर वाले के यहाँ, कहाँ कभी अंधेर-
ऊपर वाले के यहाँ, कहाँ कभी अंधेर |
सुनते थोड़ी देर से, वे भक्तों की टेर |
वे भक्तों की टेर, जून की भीषण गरमी |
भक्त मांगते ठंढ, हवा में थोड़ी नरमी |
केवल महिने पाँच, आपकी इच्छा टाले |
फिर दें छप्पर फाड़, ठंड फिर ऊपर वाले ||
1 comment:
सुशील कुमार जोशी
25 January 2016 at 05:15
जय हो ऊपर वाले की । चटक धूप सेकने पहाड़ों पर आईये ।
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जय हो ऊपर वाले की । चटक धूप सेकने पहाड़ों पर आईये ।
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