कर
असनायी |
सनेही
की नायीं ||
किन्तु
अगर
अन्देशा,
भेज
सन्देशा --
सन्देशा --
पिय के देशा ||
छोड़ बिदेशा ||
आजा
है जैसा ||
नहीं चाहिए
पैसा ||
जरुर देंखें ये खून के कतरे -- छोड़ बिदेशा ||
आजा
है जैसा ||
नहीं चाहिए
पैसा ||
हमेशा-हमेशा ||
12 जुलाई 2011 को 25 वाँ मुर्गा कटेगा
आदरणीय रविकर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी.....इश्क न गरीब होता है न अभिजात। हां... अमीर और गरीब कभी-कभी इश्क हो लेते है, यह अलहदा बात है? जी... यकीन है, जब इह लोक मैं त्याग दूंगा तो मेरी मिट्टी भी तमाम धार्मिक रस्मों के आसरे पर्यावरण को क्षति पहुंचायेगी, दाह संस्कार में? हिन्दू होने के नाते, मुझे दफनाने की कोशिश मजहबी लोग कहाँ करने देगें? सो... कोशिश करूँगा खत और मुझे एक साथ, एक गति मिले? कुछ आप समझा सकें मजहबी लोगों को तो... शायद बात बन जाये? मैं सदैव आपके साथ हूँ। धन्यवाद.....। तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ आपका।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
रविकुमार बाबुल जी |
ReplyDeleteआभार ||
बहुत-बहुत स्नेह |
ग्वालियर में ऐसा कुछ है की रोमांचित हो जाता हूँ |
बहुत बहुत आभार |
मिलते रहें हम |
New wave poetry ,new metaphor .Flows like stream .
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