खोया इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी |
कुछ भी नहीं छिपाया मैंने ,
ससम्मान बिठाया मैंने ,
कोना-कोना ढूंढ़ लिया
कहीं नहीं पर पाया मैंने --
छोड़ गया क्या मेरा डेरा , सुनो गुरूजी |
खोया इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||
नौ -छह करते जीवन बीता'
घर पर रक्खी देखी गीता,
वासांसि जीर्णानि यथा बिहाय
बिन समझे ही जीवन जीता--
जन्म-मृत्यु का कैसा फेरा, सुनो गुरूजी |
खोया इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||
चार चाँद का सुन्दर चंदा
नजर लगाये कोई गन्दा
कंगाली में आंटा गीला
ढूंढ़ के ला दो भूला-बन्दा
सुबह गई अब हुआ अँधेरा, सुनो गुरूजी |
खोया इक फालोवर मेरा, सुनो गुरूजी ||
कोई नहीं खोता जल्द ही मिल जायेगा और यदि कोई चला भी गया है तो कोई बात नहीं जो अपना था ही नहीं उसके जाने का गम नहीं .
ReplyDeleteजल्द ही मिल जायेगा आप से दूर कौन जायेगा... सुन्दर....
ReplyDeleteआपका फोलोवर कहीं नहीं जाएगा, लेकिन कविता पढ़कर आनन्द बहुत आया। एक फोलोवर तो मैं बन जाती हूँ।
ReplyDeleteदर असल लिस्ट में 9 हैं पर दीखते 8 हैं | hide ख़ाली है --कई दिनों से परेशां हूँ |
ReplyDeleteशायद कोई दो ID से बन गया होगा फालोवर ||
स्वागत है आप सभी का --
देवियों का | सज्जनों का भी |
आभार |
नौ छ: करते जीवन बीता ,
ReplyDeleteघर पर रक्खी देखी गीता ।
सुन्दर ,मनोहर ।
दो लाइनें फोलोवर के लिए भी -
जाइए आप कहाँ जायेंगें ,
ये नजर लौट के फिर आएगी ,दूर तक आपके पीछे पीछे मेरी आवाज़ चली जायेगी .
आभार |
ReplyDeleteकाम चालू है |
जरा
dcgpthravikar .blogspot .com पर
घूम लें |
let us hope he will be back.
ReplyDeleteमिला कि नहीं
ReplyDeletehide ख़ाली है --कई दिनों से परेशां हूँ |
ReplyDeleteखैर दर्शनप्रसून जी आये, स्वागत है बन्धु |
पर समस्या वही है dashboard और फ्रंट-पेज की गिनती नहीं मिल रही |
आभार -
हाल-चाल पूछने के लिए |
लो हो गए पूरे ,काम अधूरे -
ReplyDeleteफुर्सत मिली तो जाना ,सब काम हैं अधूरे
क्या क्या करें जहां में दो हाथ आदमी के ,
अच्छे, कभी बुरे हैं ,हालात आदमी के ,
पीछे पड़ें हुएँ हैं ,दिन रात आदमी के .
इत्ती भीड़ में किसे ढूंढ रहे हो भैया ?
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteआपके सभी फोलोवेर हमेशा आपके ब्लॉग पर आते रहेंगे! बहुत सुन्दर प्रस्तुती!
बहुत बहुत आभार |
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