चालबाज, ठग, धूर्तराज सब, पकडे बैठे डाली - डाली |
आज बाज को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली |
दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने अपनी हद में, मत्स्य-केंद्र मंजूर कराया ||
महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||
महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||
तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
करारा प्रहार है भ्रष्टाचार पर.
ReplyDeleteतिलचट्टों ने तेल कुओं से, अपनी शाश्वत प्यास बुझाई |
रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई ||
महाघुटाले - बाजों ने की, जब तिहाड़ की पहरेदारी |
ReplyDeleteजल्लादों ने छीनी मठ की, ठग-महन्त से कुल मुख्तारी||
आजकल यही सब हो रहा है.बहुत खूब
सटीक कटाक्ष ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ||
ReplyDeleteआभार ||
रविकार जी छा चुकें हैं आप -
ReplyDeleteचाल बाज़ औ धूर्त राज सब ,पकडे बैठे डाली डाली ,
आज बाज़ को काज मिला है ,जो करता चिड़ियों की रखवाली ।
सटीक और संदर्भित व्यंग्य -
वीरू भाई सादर नमन ||
ReplyDeleteआपका ब्लाग पर बारम्बार स्वागत है |
आपने बड़ी सुन्दर पंक्तियों को पढने का अवसर दिया ||
आभार ||
तिलचट्टों और दीमकों की तरह चाट रहे हैं ये हमारी व्यवस्था को।
ReplyDeleteआभार डाक्टर साहिबा ||
ReplyDeleteरविकर भाई !ब्लॉग पे आपकी दस्तक मुबारक क्षण था हमारे लिए .आप के ये दोहे इस समय की आवाज़ हैं -
ReplyDeleteचाल -बाज़ ,ठग ,धूर्तराज सब ,पकडे बैठे डाली -डाली ,
आज बाज़ को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली ।
इसी तर्ज़ पर स्वर्गीय बाबुल लाल शर्मा (हमारे मित्र एवं पूर्व सम्पादक ,माया ,दैनिक भास्कर )के ये पंक्तियाँ अनायास याद आ गईं -
तुलसी के पत्ते सूखें हैं ,और कैक्टस आज हारें हैं ,
आज राम को भूख लगी है ,रावण के भण्डार भरें हैं . हास्य गीत :चप्पल जूता मम्मीजी जी (मूल रचना- कार :डॉ .रूप चंद शाष्त्री मयंक ,उच्चारण )। तन रहता है भारत में ,रहता मन योरप मम्मीजी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मी जी ।
कुर्सी पर बैठाया तुमने ,लेकिन दास बना डाला
भरी तिजोरी मुझको सौंपी ,लेकिन लटकाया ताला ।
चाबी के गुच्छे को तुमने ,खुद ही कब्जाया मम्मी जी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं , जूते -चप्पल मम्मीजी ।
छोटी मोटी भूल चूक को ,अनदेखा करती हो ,
बड़ा कलेजा खूब तुम्हारा ,सबका लेखा रखती हो ,
मैं तो चौकी -दार तुम्हारा , हवलदार तुम मम्मीजी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते-चप्पल मम्मीजी ।
जनता के अरमानों को शासन से मिलकर तोड़ा है ,
लोक तंत्र की पीठ है नंगी ,पुलिस हाथ में कोड़ा है ।
मैं तो हूँ सरदार नाम का ,असरदार तुम मम्मीजी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते -चप्पल मम्मीजी ।
ये कैसा है त्याग कि, कुर्सी अपनी कर डाली ,
ऐसी चाल चली शतरंजी ,मेरी मति भी हर डाली ।
मैं तो ताबेदार बना ,कुर्सी तुम धारो मम्मीजी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मीजी ,
खड़े बिजूके को तुमने क्यों ताज पहनाया मम्मीजी ,
सिर पे कौवे आ बैठे ,और फिर हडकाया मम्मीजी ,
परदे के पीछे रहकर ,तुम सरकार चलातीं मम्मीजी ,
दिल की बात कही मैंने आगे तुम जानों मम्मीजी ।
रिमिक्स प्रस्तुति :डॉ नन्द लाल मेहता वागीश .डी .लिट ।
एवं वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
प्रस्तुति : वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
वीरुभाई
ReplyDeleteमैं तो हूँ सरदार नाम का ,असरदार तुम मम्मीजी ,
मैं तो ताबेदार बना ,कुर्सी तुम धारो मम्मीजी ,
इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मीजी ,
बहुत-बहुत धन्यवाद ||
मम्मी जी,
की महिमा अपरम्पार है ||
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी |
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ||
आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteमहाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
आभार बबली जी ||
ReplyDeleteआपका हार्दिक-अभिनन्दन
अपने ब्लाग पर ||
बेहद जबर्दस्त कटाक्ष ,उम्दा रचना
ReplyDeletelike the poem on corruption
ReplyDeleteतिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
ReplyDeleteतो रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई ||
-- क्या बात है ! करारा प्रहार काया है आपने ,अति सुंदर
शुक्रिया जी..... /
speechless..
ReplyDeleteडॉ. नूतन, sm, ana,
ReplyDeleteऔर भाई udaya veer singhjee
आपका हार्दिक-अभिनन्दन
अपने ब्लाग पर ||
जबर्दस्त कटाक्ष,करारा प्रहार काया है आपने ,अति सुंदर ....
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