Wednesday, 15 June 2011

रक्त-कोष की पहरेदारी

चालबाज, ठग, धूर्तराज   सब,   पकडे   बैठे   डाली - डाली |
आज बाज को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली |

दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने  अपनी हद में,  मत्स्य-केंद्र  मंजूर  कराया ||            

महाघुटाले - बाजों   ने   ली,  जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट  से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||

तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
तो रक्त-कोष  की  पहरेदारी,  नर-पिशाच के जिम्मे  आई ||

छोड़ के अपने गाँव

19 comments:

  1. करारा प्रहार है भ्रष्टाचार पर.

    तिलचट्टों ने तेल कुओं से, अपनी शाश्वत प्यास बुझाई |
    रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई ||

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  2. महाघुटाले - बाजों ने की, जब तिहाड़ की पहरेदारी |
    जल्लादों ने छीनी मठ की, ठग-महन्त से कुल मुख्तारी||
    आजकल यही सब हो रहा है.बहुत खूब

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद ||
    आभार ||

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  4. रविकार जी छा चुकें हैं आप -
    चाल बाज़ औ धूर्त राज सब ,पकडे बैठे डाली डाली ,
    आज बाज़ को काज मिला है ,जो करता चिड़ियों की रखवाली ।
    सटीक और संदर्भित व्यंग्य -

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  5. वीरू भाई सादर नमन ||
    आपका ब्लाग पर बारम्बार स्वागत है |
    आपने बड़ी सुन्दर पंक्तियों को पढने का अवसर दिया ||
    आभार ||

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  6. तिलचट्टों और दीमकों की तरह चाट रहे हैं ये हमारी व्यवस्था को।

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  7. आभार डाक्टर साहिबा ||

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  8. रविकर भाई !ब्लॉग पे आपकी दस्तक मुबारक क्षण था हमारे लिए .आप के ये दोहे इस समय की आवाज़ हैं -
    चाल -बाज़ ,ठग ,धूर्तराज सब ,पकडे बैठे डाली -डाली ,
    आज बाज़ को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली ।
    इसी तर्ज़ पर स्वर्गीय बाबुल लाल शर्मा (हमारे मित्र एवं पूर्व सम्पादक ,माया ,दैनिक भास्कर )के ये पंक्तियाँ अनायास याद आ गईं -
    तुलसी के पत्ते सूखें हैं ,और कैक्टस आज हारें हैं ,
    आज राम को भूख लगी है ,रावण के भण्डार भरें हैं . हास्य गीत :चप्पल जूता मम्मीजी जी (मूल रचना- कार :डॉ .रूप चंद शाष्त्री मयंक ,उच्चारण )। तन रहता है भारत में ,रहता मन योरप मम्मीजी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मी जी ।
    कुर्सी पर बैठाया तुमने ,लेकिन दास बना डाला
    भरी तिजोरी मुझको सौंपी ,लेकिन लटकाया ताला ।
    चाबी के गुच्छे को तुमने ,खुद ही कब्जाया मम्मी जी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं , जूते -चप्पल मम्मीजी ।
    छोटी मोटी भूल चूक को ,अनदेखा करती हो ,
    बड़ा कलेजा खूब तुम्हारा ,सबका लेखा रखती हो ,
    मैं तो चौकी -दार तुम्हारा , हवलदार तुम मम्मीजी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते-चप्पल मम्मीजी ।
    जनता के अरमानों को शासन से मिलकर तोड़ा है ,
    लोक तंत्र की पीठ है नंगी ,पुलिस हाथ में कोड़ा है ।
    मैं तो हूँ सरदार नाम का ,असरदार तुम मम्मीजी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते -चप्पल मम्मीजी ।
    ये कैसा है त्याग कि, कुर्सी अपनी कर डाली ,
    ऐसी चाल चली शतरंजी ,मेरी मति भी हर डाली ।
    मैं तो ताबेदार बना ,कुर्सी तुम धारो मम्मीजी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मीजी ,

    खड़े बिजूके को तुमने क्यों ताज पहनाया मम्मीजी ,
    सिर पे कौवे आ बैठे ,और फिर हडकाया मम्मीजी ,
    परदे के पीछे रहकर ,तुम सरकार चलातीं मम्मीजी ,
    दिल की बात कही मैंने आगे तुम जानों मम्मीजी ।
    रिमिक्स प्रस्तुति :डॉ नन्द लाल मेहता वागीश .डी .लिट ।
    एवं वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।

    प्रस्तुति : वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).

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  9. वीरुभाई

    मैं तो हूँ सरदार नाम का ,असरदार तुम मम्मीजी ,
    मैं तो ताबेदार बना ,कुर्सी तुम धारो मम्मीजी ,
    इसीलिए तो उछल रहें हैं ,जूते चप्पल मम्मीजी ,

    बहुत-बहुत धन्यवाद ||
    मम्मी जी,
    की महिमा अपरम्पार है ||

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  10. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी |
    बहुत-बहुत धन्यवाद ||

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  11. आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
    जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-महन्त की कुल मुख्तारी||
    बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!

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  12. आभार बबली जी ||
    आपका हार्दिक-अभिनन्दन
    अपने ब्लाग पर ||

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  13. बेहद जबर्दस्त कटाक्ष ,उम्दा रचना

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  14. like the poem on corruption

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  15. तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
    तो रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई ||
    -- क्या बात है ! करारा प्रहार काया है आपने ,अति सुंदर
    शुक्रिया जी..... /

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  16. डॉ. नूतन, sm, ana,
    और भाई udaya veer singhjee
    आपका हार्दिक-अभिनन्दन
    अपने ब्लाग पर ||

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  17. जबर्दस्त कटाक्ष,करारा प्रहार काया है आपने ,अति सुंदर ....

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