Saturday, 25 June 2011

स्वतन्त्र - दोहे

सोखे  सागर  चोंच   से, छोट टिटहरी नाय |
इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

सौदागर   भगते   भये,   डेरा  घुसते   ऊँट |
जो लेना वो  ले चले,   जी-भर  के  तू  लूट ||

कछुआ  -  टाटा   कर   रहे ,   पूरे   सारोकार | 
खरगोशों   की   फौज  में,  भरे पड़े  मक्कार ||

कोशिश  अपने  राम  की,  बचा  रहे  यह  देश |
सदियों  से  लुटता  रहा,   माया  गई  विदेश  ||

कोयल  कागा  के  घरे,   करती  कहाँ   बवाल  |
चाल-बाज चल न सका,  कोयल चल दी चाल ||

प्रगति   पंख   को   नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना   क्यूँ   करे ,  सारा  सभ्य  समाज  || 

रिश्तों   की   पूंजी  बड़ी , हर-पल संयम *वर्त |     *व्यवहार कर  
पूर्ण-वृत्त   पेटक  रहे ,  असली  सुख   *संवर्त ||     *इकठ्ठा


16 comments:

  1. Jordar dohe Rawikar jee. Aaj ke halat par sateek tippani.

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  2. विदेश गयी माया वापस आनी मुश्किल है।

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  3. प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
    आप मेरे ब्लांग में आए मेरा हौसला बढ़ाया ..बहुत बहुत धन्यवाद....

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  4. रविकर जी, पिछले कुछ दिनों से आपकी काव्यात्मक टिप्पणियाँ जहाँ तहां पढ़ने को मिल रही हैं, जो सटीक होती हैं, लगता है कविता आपके लिये सहज है और स्वतः स्फूर्त है, मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिये आभार! आपके ये दोहे प्रशंसनीय हैं.

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  5. बहुत बढ़िया दोहे!
    सभी बहुत खूबसूरत हैं!

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  6. आप सभी देवियों एवं सज्जनों का
    बहुत-बहुत आभार |
    काव्य-सृजना को प्रेरित एवं
    उत्साहित करता है लगातार ||

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  7. दोहे तो कुछ कुछ समझ में नहीं आए। शुरु में स्वतंत शब्द कुछ गलत लगा।
    फिर नायँ और दिखाय में ध्यान दें।
    और अन्तिम दोहे में में तो आपने इसे दोहा ही नहीं रहने दिया खर्च और संवर्त में तुक नहीं है।

    अब बुरा नहीं मानिएगा। मैं इस लायक तो नहीं ही हूँ कि नमन किया जाय।

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  8. This poetry ,Ravikars couplets reflects reality bytes in digital mode .Sorry dost Hi font not available ,me out at PA(pennsilvania ).

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  9. पंडित श्री चंदन कुमार मिश्र जी
    को बहुत-बहुत धन्यवाद ||
    यथायोग्य संशोधन कर पुन: प्रस्तुत किया |

    रिश्तों की पूंजी बड़ी , हर-पल संयम *वर्त | *व्यवहार कर
    पूर्ण-वृत्त पेटक रहे , असली सुख संवर्त ||

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  10. आपकी शब्द संपदा तो निश्चय ही मुझसे अधिक(शायद बहुत अधिक) है।

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  11. फिर आप माने नहीं, पंडित या अन्य विशेषण मत इस्तेमाल कीजिए मेरे लिए। वैसे दोहे मैंने भी कुछ लिखे थे। मेरे चिट्ठे पर हैं, देखा है?

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  12. प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||

    अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!

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  13. आदरणीय रविकर जी - पहले तो आप हमारे यहाँ आये -आभार आप का -

    सोखे सागर चोंच से, छोट टिटहरी नाय |

    इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

    सुन्दर दोहे -गंभीर भाव से भरे -

    शुक्ल भ्रमर ५

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  14. आभार ||
    हमेशा आप का स्वागत है |

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  15. दिनेश जी,
    बहुत सुंदर दोहों की रचना की है आपने।
    आप में काव्य प्रतिभा जन्मजात है।

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  16. वाह रविकर जी आपके दोहे तो कमाल के हैं। इसे कहते हैँ लेखनी का वार...बहुत सुन्दर...बधाई

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